जानिए, सऊदी अरब कैसे प्राचीन जुनिपर वनों को बहाल कर जैव विविधता की रक्षा कर रहा ?
सुलाफा अलखुनेज़ी | रियाद
दक्षिण-पश्चिमी सऊदी अरब के धुंध से ढके पहाड़ों में, जुनिपर वृक्ष — जिसे स्थानीय रूप से “पेड़ों की रानी” कहा जाता है — लंबे समय से देश के पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्रों का मौन प्रहरी बना हुआ है।अपनी सहनशीलता, पारिस्थितिकीय भूमिका और सांस्कृतिक विरासत के लिए पूजनीय यह प्राचीन प्रजाति अब एक राष्ट्रीय संरक्षण अभियान का केंद्र है, जिसका उद्देश्य दशकों से हो रहे पर्यावरणीय क्षरण को पलटना है।

जुनिपर वनों का अस्तित्व और महत्व
जुनिपर वृक्ष समुद्र तल से 2,500 से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर ताइफ, अल-बाहा और असीर जैसे क्षेत्रों में पनपते हैं। ये सदाबहार शंकुधारी वृक्ष केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं, बल्कि अफ्रीकी पर्वतीय वनों के जीवित अवशेष हैं, जो कभी अरब प्रायद्वीप के विभिन्न हिस्सों तक फैले थे।
टेरे नेक्सस में जूनियर पर्यावरण सलाहकार लियूबोव कोबिक के अनुसार:
“जुनिपर वृक्षों ने ऐसे क्षेत्रों में एक अनोखा सूक्ष्म जलवायु तैयार किया है जहां रेगिस्तान, पहाड़ और ऊँचे मैदान जैसे शुष्क और अर्ध-शुष्क पारिस्थितिक तंत्र प्रबल हैं।”
अल-बाहा क्षेत्र में सदियों से ये वृक्ष पर्वतों को हरे रंग से सजाते आए हैं। ये वनों जैव विविधता के लिए दुर्लभ आश्रय प्रदान करते हैं। कोबिक कहती हैं:
“इन क्षेत्रों को आज जुनिपर वनों के नाम से जाना जाता है और ये हजारों दुर्लभ पौधों, स्तनधारियों और विशेष प्रजातियों का घर हैं।”
खतरे में हैं ये नायाब वन
जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा ने इन वनों की संख्या को कम कर दिया है। बारिश की कमी और अत्यधिक सूखे ने बीजों के अंकुरण और पौधों की वृद्धि को प्रभावित किया है।
कोबिक बताती हैं:
“कम वर्षा और गर्म मौसम की वजह से मिट्टी जल्दी सूख जाती है, जिससे पौधों का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। छोटे पौधे सूखे और गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे पुरानी पेड़-पौधों की प्राकृतिक पुनःप्राप्ति रुक जाती है।”

क्या आप जानते हैं?
- असीर में जाबल सौदा 3,015 मीटर ऊँचा है और जुनिपर वृक्षों से ढका है।
- सामान्य जुनिपर का विश्व में सबसे व्यापक वितरण है।
- यह वृक्ष अम्लीय और क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टी में उग सकता है और 120 वर्ष तक जीवित रह सकता है। कुछ 255 वर्ष तक भी जीवित रहे हैं।
सरकार की संरक्षण पहल
सऊदी अरब ने संकट को देखते हुए कार्यवाही शुरू की है। पब्लिक इनवेस्टमेंट फंड द्वारा समर्थित “सौदा डेवलपमेंट” परियोजना ने अब तक लगभग 1,65,000 स्थानीय वृक्ष, जिनमें जुनिपर भी शामिल हैं, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगाए हैं।
असीर नेशनल पार्क, जिसकी स्थापना 1980 के दशक में हुई थी, में वनों की रक्षा के लिए खास उपाय किए जा रहे हैं, जैसे कि
- चराई पर नियंत्रण,
- विकास कार्यों को सीमित करना,
- संवेदनशील क्षेत्रों को घेरना, और
- वृक्षों के स्वास्थ्य की निगरानी।
कोबिक बताती हैं कि “नेशनल सेंटर फॉर वेजिटेशन डेवलपमेंट एंड कॉम्बैटिंग डेज़र्टिफिकेशन” के साथ मिलकर यह कार्य किया जा रहा है।
सांस्कृतिक धरोहर भी है जुनिपर
जुनिपर का महत्व केवल पर्यावरणीय नहीं है। इसके लकड़ी का उपयोग पारंपरिक औजारों और धार्मिक वस्तुओं में किया जाता है। इसकी बेरी का उपयोग जुकाम और पेट की बीमारियों के इलाज में होता है। इसका तेल सुगंधित उत्पादों और इत्रों में इस्तेमाल होता है।

निष्कर्ष
जुनिपर वृक्ष, जिन्हें आधुनिक विकास की दौड़ में कभी नज़रअंदाज़ कर दिया गया था, अब स्थायी विकास के प्रतीक बनकर उभर रहे हैं। इन्हें संरक्षित कर सऊदी अरब अपनी प्राकृतिक धरोहर की रक्षा कर रहा है और हरियाली से परिपूर्ण अपने प्राचीन पर्वतीय अतीत को पुनः जीवित कर रहा है।