Mumbai ‘ क्या कहा, आप मुसलमान हो..तब तो आपको किराए पर नहीं मिलेगा मकान’
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फिर भी मुस्लिम महिला पत्रकार ने अच्छे मकान की उम्मीद नहीं छोड़ी
मदिहा मुजावर। यह नाम है एक मुस्लिम महिला पत्रकार का। वह अर्थ-व्यापार के चैनल सीएनबीसी टीवी 18 (CNBC TV 18) में काम करती हैं। तीन बिल्लियों के साथ एक कमरे के अपॉर्टमेंट में पिछले छह साल से रहते एक दिन ख्याल आया। परिवार के लोग कई बार उनके साथ रहने की इच्छा जता चुके हैं। छोटा घर होने के कारण वे नहीं आते। इस लिए क्यों न अच्छी जगह एक अच्छा सा घर किराए पर ले लिया जाए ! वह बताती हैं, 13 साल से मुंबई में रहते, उनके लिए यह दूसरा मौका था जब वह एक अदद घर की तलाश में निकलने वाली थीं।
छह साल पहले एक कमरे का अपॉर्टमेंट लेने में कोई परेशानी नहीं आई। उनका मौजूदा घर मुंबई के लोअर परेल इलाके में है। यह उनके कार्यालय, शॉपिंग मॉल, किराना बाजारों के बेहद करीब है। इसके बावजूद इलाके की कुछ कमियाँ भी हैं। बिज़नेस सेंटर होने, लगातार निर्माण की गतिविधियाँ चलने एवं भारी संख्या में गाड़ियों के आने जाने के शोर से वायु व ध्वनि प्रदूषण से इलाक़ा हर दम अव्यवस्थित रहता है। इसलिए सीएनबीसी टीवी 18 की पत्रकार मदिहा मुजावर ने बांद्रा, खार, सांताक्रूज जैसे उप नगर में घर की तलाश शुरू कर दी। मुंबई का यह क्षेत्र चौड़ी सड़कों, हरियाली के साथ रिहायशी के लिए माकूल है। उन्होंने अपनी आवश्यकता एवं बजट के साथ घर के लिए एजेंट से संपर्क शुरू कर दिया।
फेसबुक पर मकानों का ब्योरा मौजूद
कई एजेंट फेसबुक (FACEBOOK) के जरिए पट्टे पर घर उपलब्ध कराने की जानकारी साझा करते हैं। उनका यह तरीका घर ढूंढने वालों के लिए मददगार होता है। घर के बारे में आपको संक्षिप्त जानकारी फेसबुक पर मिल जाती है। एजेंट (Agents) आमतौर पर घर के ले आउट, आकार, कमरों की संख्या जैसी जरूरी जानकारी फेसबुक पोस्ट में उपलब्ध करा देते हैं। मगर वे सबसे महत्वपूर्ण जानकारी छिपा जाते हैं। वह है किराएदार के लिए मालिकों की प्राथमिकताएं एवं शर्तें। मसलन, कोई बैचलर को घर देना पसंद नहीं करता, कोई लड़कियों को और कोई फैमली को। इसके अलावा भी मकान मालिकों के कई और ढकी-छुपी शर्तें होती हैं। मकान दिलाने वाले एजेंट जब आपको फोन करेगें तो इंटरव्यू के जरिए आपका पूरा इतिहास-भूगोल जानने की कोशिश करेंगे। जैसे आपको मकान दिलाने की बजाए आपकी शादी के लिए रिश्ता लेकर आने वाले हैं।
मकान मालिक सांप्रदायिक सौहार्द को नहीं देते महत्व
पत्रकार का कहना है कि उसे फेसबुक पर पोस्ट किया हुआ एक मकान पसंद आया। एजेंट को फोन पर बातचीत में पेशे, बजट, जरूरत और कब तक के लिए घर चाहिए, सारी जानकारी दे दी। इस बीच उसे जब पता चला कि वह मुसलमान है एजेंट चौक पड़ा।
‘‘ओह,आप मुस्लिम हो? क्षमा करें, मुस्लिम को मकान नहीं देंगे।’’ पत्रकार के मुताबिक, यह पहली बार था जब किसी ने उसे उसके मज़हब के कारण मकान देने से मना किया। मुंबई के इन क्षेत्रों में अपॉर्टमेंट की भरमार है। पत्रकार खुद महाराष्ट्र के रत्नागिरी की मूल निवासी हैं। महाराष्ट्र का यह जिला अल्फांसो आम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। जिले में हिंदू-मुस्लिम भाईचारगी से रहते हैं। त्योहारों में समान उत्साह देखने को मिलता है। पत्रकार कहती है, वह अपने मित्र के घर गणेश पूजा पर जाती है। उसे त्योहार पर मोदक का शिददत से इंतजार रहता है, जबकि उसकी दोस्त ईद पर उसके घर आती है। बड़े चाव से शीरखोरमा व बिरयानी उड़ाती है। धर्म कभी उनके आड़े नहीं आया। इसलिए एजेंट की बात सुनकर उसे गहरा धक्का लगा। लेकिन करती भी किया। फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
मकान मालिकों को मुस्लिम किराएदार पसंद नहीं
मदिहा मुजावर कहती हैं, उन्होंने मुंबई के किराए की संपत्ति के बाजार में ऐसे धार्मिक पूर्वाग्रह के कई किस्से सुने थे। वह समझती थीं कुछ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। इस लिए ब्रोकर से बुरा अनुभव होने के बावजूद, मकान खोजने का सिलसिला बंद नहीं किया। इस क्रम में उसे एक और ब्रोकर का फोन आया। मकान उसके बजट में था। एजेंट ने उससे अधिक सवाल किए बिना सीधे मकान देखने के लिए बुला लिया। वह बहुत उत्साहित थी। जरूरत के हिसाब से घर की तलाश पूरी होने वाली थी। घर अच्छा था। सुसज्जित भी। रेलवे स्टेशन के करीब था। ऑफिस आने जाने वालों को अक्सर ऐसे घर की तलाश रहती है। इसलिए पत्रकार
को मकान पसंद आते ही ब्रोकर से किराए पर मोल-भाव शुरू कर दी। बातचीत के दौरान पत्रकार के पिता का फोन आ गया। पारंपरिक तरीके से सलाम करने के बाद खैरियत पूछी। फिर अपने वालिद को बताया कि मकान देख रही है। कुछ देर बाद घर पहुँचकर फोन करती है। यह कहकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। इसपर ब्रोकर पूछ बैठा, ‘‘मैडम आप मुस्लिम हैं क्या?’’ झिझक के साथ कहा-‘‘हाँ, क्यों? कुछ समस्या है।’’
ब्रोकर मुस्लिम था। मगर शर्मिंदगी के साथ बोला, ‘‘ मालिक मुस्लिम को किराए पर मकान नहीं देता।’’
यह सुनकर महिला पत्रकार चुपचाप घर से बाहर आ गई। पीछे से मालिक की पसंद को लेकर ब्रोकर की माफी मांगने की आवाज़ सुनाई देती रही। तब पत्रकार ने सोचा कि मालिक को फोन करके पूछे कि उसने कैसे सोच लिया कि वह उसे नुकसान पहुंचा सकती है। फिर, यह सोचकर खामोश रह गई कि मालिक को अधिकार है कि वह किराएदार के तौर पर किसे चाहता है और किसे नहीं।
कोविड के चलते मकान खाली, पर मुसलमानों के लिए नहीं
कोविड 19 (COVID 19) से किराए में कमी आई है। कई किराएदार मकान खाली कर मुंबई से जा चुके हैं। कई को नौकरी खोने के बाद महँगा घर छोड़ना पड़ा। कुछ अस्थायी तौर पर अपने मूल स्थान वापस चले गए। इस लिए बड़ी संख्या में मुंबई के घर खाली पड़े हैं। मुस्लिम महिला पत्रकार को इस लिए भी घर की तलाश है कि अभी माकूल किराए पर मिल जाएगा। लेकिन इसमें मज़हब आड़े आएगी, सोचा नहीं था। इस कटु अनुभव के बाद उसने दलालों से बातचीत के पहले ही बताना शुरू कर दिया कि वह मुसलमान है। ताकि वे उन घरों को दिखा सके जिनके यहां ‘मुस्लिमों के रहने पर कोई आपत्ति नहीं। इसके बाद से एजेंट मुस्लिम महिला पत्रकार को केवल मुस्लिम बहुल इलाकों में ही ले जाते हैं। आम तौर से उसे ऐसे घर पसंद नहीं आते। वह कहती हैं, धीरे-धीरे वह अच्छे घरों की उम्मीद छोड़ती जा रही हैं। इससे इतनी निराश हैं कि दलालों से पूछने लगी हैं-‘‘ क्या समस्या है मुस्लिम से?’’
जवाब मिलता-‘‘उन्हें शुद्ध शाकाहारी चाहिए।’’
वह कहतीं-‘‘कितने लोग शुद्ध शाकाहारी मिलेंगे मुंबई में?
मदिहा मुजावर कहती हैं-‘‘ उन्हें आश्चर्य है कि क्या देश में नॉन-वेज खाने वाले केवल मुसलमान हैं?
बांद्रा के एक लोकप्रिय ब्रोकर ने बताया कि मुंबई के उपनगरों के 60 प्रतिशत अपॉर्टमेंट मुसलमानों के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इसपर पत्रकार ने उससे कहा-‘‘आप यह बात अपने फेसबुक वाल पर क्यों नहीं लिखते ? उसका जवाब था-‘ इस लिए नहीं लिखते कि मुंबई के बाकी हिस्से में वह मुस्लिम ग्राहक खो सकता है।’’
एक बार एक ब्रोकर उसे एक अच्छे फ्लैट पर ले गया। उसकी बालकनियों से सुंदर नज़ारा दिख रहा था। वह पत्रकार से उसके धर्म के बारे में पूछना भूल गया। लोग कहते हैं कि महिला पत्रकार कुछ को गुजराती सी दिखती है। कुछ कद-काठी के कारण उसे पंजाबी समझते हैं और कुछ पहाड़ी। घर देखने के बाद पत्रकार ने उससे पूछा,‘‘
मालिक को उसके मुसलमान होने से कोई समस्या तो नहीं है न? यह सुनते ही, एजेंट का भाव बदल गया। पूछा-‘‘आप मुस्लिम हो ? और फिर क्या हुआ होगा आप समझ सकते हैं। एक ब्रोकर ने बताया कि कई मकान मालिकों का मुसलमानों से बुरा अनुभव रहा है, इसलिए अब उन्हें मकान देना नहीं चाहते। क्या मुंबई का हर मुसलमान किराएदार के तौर खराब और अवांछनीय है ? क्या कुछ की ग़लतियों की सजा पूरे समुदाय से घृणा कर देना उचित है?
ऐसे ही कड़वे सवाल यह महिला पत्रकार हर उस एजेंट से पूछने लगी है जो मुस्लिम होने के कारण उसे मकान किराए परदिलाने से मना कर देते हैं। बावजूद इसके अच्छे कमान की उम्मीद उसने अब तक नहीं छोड़ी है।
(-स्रोतः सीएनबीसी टीवी 18)
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