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यूपीएससी रिजल्ट और लोकसभा चुनाव से सीखें देश के मुसलमान

गुजरूख जहीन

हम मुसलमानों की यह फितरत बन चुकी है. बात-बात पर सिवाए कोस ने और रोने के कुछ नहीं करते. यहां तक कि हमने ईमानदारी कोशिशें करनी भी बंद कर दी हैं. लोकसभा चुनाव में सियासी पार्टियों मुसलमानों को टिकट नहीं देतीं.ऐसा क्या हुआ कि ऐसे हालात पैदा हो गए ? इसपर विचार करने और इसके रास्ते मंे आने वाली बाधाओं को दूर करने की बजाए, हम सिवाय शिकवा करने के कुछ नहीं कर रहे.

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यदि देश का तमाम मुसलमान एक चुनाव में यह सामूहिक फैसला कर ले कि उन्हें सियासत में माकूल भागीदारी नहीं मिलती तो वे इस बार मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे. फिर देखिए इस लोकतांत्रिक देश की सियासत में कैसे बदलाव आता है.मुसलमान पंजाबियों, किसान, गुर्जर, जाट आंदोलन से सीखें.

हम करेंगे तो परिणाम आएगा न. हमने करना ही बंद कर दिया है. क्यों बंद कर दिया, यह सोचने का विषय है.इस बार का यूपीएससी रिजल्ट इसका बेहतर उदाहरण है. पिछले छह सालों से इस प्रतिष्ठित परीक्षा में मुस्लिम उम्मीदवार बेहतर परिणाम नहीं दे पा रहे थे. पहली बार 2016 में सर्वाधिक 52 मुस्लिम छात्रों ने यूपीएससी परीक्षा में कामयाबी हासिल की थी. उसके बाद 2017 में 50 उम्मीदवार परीक्षा मंे कामयाब हुए.

फिर मुस्लिम प्रत्याशियों ने मेहनत करनी बंद कर दी. नतीजन, यूपीएससी की परीक्षा में कामयाब मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 30 से आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मगर छह साल बाद तस्वीर बदली है. यूपीएससी 2023 की परीक्षा में 50 मुस्लिम उम्मीदवारों को सफलता मिली है. केवल जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इस बार 35 उम्मीदवार परीक्षा में कामयाब हुए हैं, जिनमें अधिकांष मुस्लिम हैं.

इसके अलावा जकात फाउंडेशन और बिहार हज हाउस से  यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने वाले भी कई छात्र कामयाबी के झंडे गाड़े हैं.जामिया से यूपीएससी की तैयारी करने वाली नौशीन तो टाॅप टेन में छठे नंबर पर आई हैं. इनमें से कई मुस्लिम कैंडिडेट ऐसे हैं जिन्होंने पहले की अटेंप्ट में कामयाबी पाई है.

इस बार के यूपीएससी के परिणाम संकेत देते हैं कि आप संघर्ष करना बंद न करें. हालात से जूझेंगे तो परिणाम अच्छा आएगा ही. प्रतिभाओं को दबाया नहीं जा सकता. बॉक्सर निखत जरीन और टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को देखें.वो इसका बेहतर उदाहरण हैं. हर देश को प्रतिभाशाली  व्यक्ति चाहिए. इससे देश  की प्रतिष्ठा बढ़ती है. ऐसे लोगों को आगे बढ़ाते समय सरकारें यह नहीं देखतीं कि वह हिंदू है या मुसलमान. उसे केवल इस बात की चिंता होती है कि कौन उसकी सरकार और देश की प्रतिष्ठा को दुनिया के सामने चमकेगा.

इसलिए संघर्ष बंद नहीं करें. करते रहें. सियासी दलों द्वारा टिकट नहीं देने से निराश न हों. अपना वजूद ऐसे बनाएं कि पार्टियों को आपके आगे झुकने को मजबूर होना पडे़. बिन भय प्रीत नहीं होता. इसे समझें. यदि आपकी औकात इस लायक होगी कि किसी पार्टी की जीत की गारंटी बन जाए तो कोई आपको दरकिनार नहीं कर सकता. हारने वालों को कोई नहीं पूछता. उसका समुदाय और समाज भी नहीं. आप हारे हुए जुआरी मत बनिए. संघर्ष कीजिए. करते रहिए.

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