बयानबाजी नहीं, कर के दिखाना होगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है. कई नए चेहरे इनमें शामिल किए गए हैं. विस्तार भी छोटा-मोटा नहीं हुआ है. तकरीबन 42 नए, पुराने चेहरे इधर से उधर किए गए. मगर इतने बड़े विस्तार में देश के 15 प्रतिशत की आबादी को पहले की तरह ही इस बार भी तरजीह नहीं दी गई.
इस मुल्क में मुसलमान दूसरी बड़ी आबादी है. बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी कभी मुसलमानों को अहमियत नहीं देती. मोदी मंत्रिमंडल में एक पुराना मुस्लिम चेहरा है
मुख्तार अब्बास नकवी का. उन्हें भी अल्पसंख्यक मंत्रालय दे रखा है. वह काफी बेहतर कर रहे हैं.
मगर मंत्रिमंडल विस्तार में उनकी कोई तरक्की नहीं हुई और न ही ऐसा प्रयास किया गया कि अल्पसंख्यक मंत्रालय किसी दूसरे को मंत्री बनाकर दे दिया जाए. मुख्तार अब्बास नकवी को बड़ी जिम्मेदारी दी जाए.
बहरहाल, यह बात इसलिए कही जा रही हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक दो दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के गार्जियन संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से मुसलमानों को लेकर एक बहुत ही सकारात्मक बयान आया था.
उन्होंने यह बयान डॉक्टर इफ्तिखार अहमद की आरएसएस की तारीफ में लिखी गई पुस्तक के विमोचन पर दिया था. डाॅक्टर इफ्तिखार कहते हैं कि वह पिछले तीस वर्षों से सीना ठोक कर और तमाम विरोध के बावजूद संघ से जुड़े हुए हैं. उन्हांेने एक बातचीत में कहा कि सेक्युलर पार्टियां भाजपा और आरएसएस के नाम पर मुसलमानों को डराती रही
हैं.
कभी मुसलमानों का भला नहीं किया. वह कहते हैं,मुसलमानों को राष्ट्रपति तो बनाया, पर चपड़ासी नहीं बनाया,’’ यानी सिर्फ सिंबाॅलिज्म पर काम किया, मुसलमानों की जरूरत के हिसाब से उन्हें नौकरी और दूसरी जगह नहीं दी गई.
इफ्तिखार साहब की यह दलील सुनने में तो बड़ी अच्छी लगती है. मगर वह शायद भूल गए कि भाजपा भी अपनी पार्टी में शामिल मुसलमानों के साथ वही सब कुछ कर रही है. क्या वजह है कि शाहनवाज जैसे वफादार मुसलमान नेता को कई सालों तक सत्ता के बाहर बैठा रखा ? खुद इफ्तिखार साहब यदि तीस वर्षों से संघ के लिए काम कर रहे हैं तो उन्हें क्यों आरएसएस या भाजपा में तरजीह नहीं दी गई ?
भाजपा ने तो अपने मुस्लिम कैडर के साथ और बुरा कर रखा है. उसकी ओर से कहा जाता है कि मुसलमान कभी भाजपा को वोट नहीं देगा. क्यों देगा ? आपने मुस्लिम कौम को कितना सत्ता में भागीदारी दी हुई है ? कितने
मुसलमानों को संघ, बीजेपी या दूसरे संगठनों में ओहदेदार बना रखा है ?
मुसलमानों को बीजेपी क्यों नहीं टिकट देती ? उसकी दलील है कि मुसलमानों को टिकट देने पर मुसलमान ही वोट नहीं देते. ठीक है दलील मान ली. मगर जब मोदी जी का जादू पूरे हिंदुस्तान में चलता है और भाजपा किसी जाति, धर्म की पार्टी नहीं है तो मुसलमानों को हिंदू बहुल क्षेत्र से क्यों नहीं चुनाव लड़ाया जाता ?
दरअसल, संघ चाहता ही नहीं कि इसके संगठनों में मुसलमानों का प्रवेश हो. यदि किसी को आने की इजाजत दी भी जाए तो दरवाजे तक. सत्ता में शामिल कर लिया तो उनकी वह नीतियां नहीं चल पाएंगी, जिसको अमल में लाने के बाद मुसलमान विरोध में खड़े हो जाते हैं. भाजपा में एक और गड़बड़ी है. सुन्नी मुसलमानों को इस पार्टी में जगह नहीं दी जाती. देश के 15 फीसदी मुस्लिम आबादी में शिया मात्र एक प्रतिशत हैं. 14 प्रतिशत सुन्नी हैं.
अब नजर उठाकर देख लीजिए भाजपा ने केंद्र या प्रदेश में जिन मुस्लिम नेताओं को चेहरा बनाकर रखा है वह शिया हैं या सुन्नी ?
इसलिए केवल लच्छेदार बयानबाजी से कुछ नहीं होने वाला. उत्तर प्रदेश का चुनाव सिर पर है और इस प्रदेश में मुस्लिम आबादी किसी पार्टी का भी खेल बिगाड़ सकती है तो मुसलमानों की बात कही जा रही है.
भागवत गाजियाबाद में डॉक्टर इफ्तिखार अहमद की पुस्तक विमोचन पर जब मुसलमानों के संदर्भ में बयान दे रहे थे उसी समय हरियाणा के भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता सूरज पाल अम्मू मुसलमानों को लेकर अनर्गल, बेहूदा और बेहद आपत्तिजनक बातें कर रहे थे. उनके बयान आज भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. क्यों नहीं उनके खिलाफ देश का माहौन बिगाड़ने की कोशिश करने के आरोप में देशविरोधी गतिविधियों के तहत मुकदमा कर गिरफ्तार किया गया ? इससे पहले भी फिल्मों के संदर्भ में और हरियाणा के मेवात में एक पंचायत में बेहद आपत्तिजनक बातें कह चुके हैं. उन्हें गिरफ्तार करना तो छोड़िए, उन्हें प्रवक्ता के पद से ही भी नहीं हटया गया. फिर आप कहते हो कि मुसलमान संघ और भाजपा से नहीं जुड़ता !
जैसे पाकिस्तान के संदर्भ में देश की सरकारों का रवैया रहा है कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकती, उसी तरह भारतीय मुसलमानों का भी यही मानना है कि दुत्कार कर आप हमें कभी अपना नहीं बना सकते. देश का मुसलमान बहुत होशियार हो चुका है. इसके दो ताजा उदाहरण हैं. एक बिहार और दूसरा पश्चिम बंगाल का. बिहार में जदयू और भाजपा की ऐसी हालत कर दी है कि कोई भी वहां सीना ठोक कर सरकार चलाने की स्थिति में नहीं है. इसी तरह पश्चिम बंगाल में बीजेपी को अच्छी सीटें तो मिलीं, पर सत्ता हथियाने नहीं दिया. आज वहां ऐसी मुख्यमंत्री है,
जो बीजेपी को कुछ भी चलने नहीं दे रही है. चुनाव में जो लोग ममता की पार्टी को छोड़ गए बीजेपी में गए थे, अब वह सड़कों पर ऐलान कर रहे हैं कि भाजपा में जाना उनकी भूल थी.
यूपी में भी अब वही खेल होता दिख रहा है. पिछले पांच वर्षों में यूपी में जो कुछ हुआ. अवश्य ही उसका हिसाब देना होगा. केवल लच्छेदार बयान बाजी से कुछ नहीं होने वाला. पिछले सात वर्षों में देश की दूसरी बड़ी आबादी को नुक्सान पहुंचाया गया
गया है, उससे ज्यादा अब कुछ हो ही नहीं सकता. देश का मुसलमान अब समझ चुका है. इसलिए आपके पास ऐसे ठोस मुददे नहीं बचे हैं कि जिसे दिखाकर देशभर में अपने पक्ष में हवा बनाई जा सकते. नोटबंदी, महंगाई, रोजगार और कोरोना में आपकी नाकामी ने आपके प्रबंधन की पोल खोल दी है. आपके अपने लोग आपसे बहुत ज्यादा नाराज हैं. और आपने जो बड़ा ख्वाब पाल रखा है. उसे सिरे चढ़ाने के लिए आपका लंबे समय तक सत्ता में रहना जरूरी है, जो अब खतरे में पढ़ता दिखाई दे रहा है तो आपको मुसलमान याद आने लगे हैं. दिल खोलिएगा तो आपके लिए शायद सारे दरवाजे खुल भी जाएं.