कर्नाटक चुनाव में विरोधियों की नई चाल: मुसलमानों और कांग्रेस के रिश्ते में फूट डालने की कोशिश
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, बेंगलुरु
कर्नाटक की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की विधानसभा चुनाव 2023 में हालत पतली है. जिस तरह डूबती नाव समझ पार्टी के वरिष्ठ नेता भाजपा को छोड़कर कांग्रेस से जुड़ रहे हैं, ऐसे मंे इस बार मतदाताओं के कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टी के साथ जाने और इसकी सूबे में नई सरकार बनने की संभावना प्रबल होती जा रही है.
कर्नाटक में पिछले दो साल तक हिजाब, हलाला, मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार, आरक्षण छिनने का नाटक चलता रहा. इससे न केवल यहां के मुसलमान दुखी हैं, सेक्युलर सोच रखने वाले भी इस दौरान हंगामी सूरत से परेशान रहे. ऐसे में मुसलमानों एवं निष्पक्ष लोगों के कांग्रेस एवं सेक्युलर पार्टियों के प्रति गोलबंदी से एक तबका घबरा गया है. इस गोलबंदी को तोड़ने के लिए मुसलमानों के कांग्रेस से नाराजगी की बात उछाली जा रही है. इसे उछालने के लिए मीडिया के एक वर्ग को खास तौर से लगाया गया है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार उम्मीद से कम मैदान में उतारे, जबकि दूसरी पार्टियांे ने भी यही किया. बीजेपी ने तो एक मुसलमान को टिकट नहीं दिया.
ऐसे ही एक रिपोर्ट के अनुसार,कर्नाटक में मुसलमान समुदाय, जो संख्या के मामले में एक महत्वपूर्ण समूह है, ध्रुवीकरण की राजनीति में उलझा हुआ है. आजादी के बाद से कांग्रेस का समर्थन करने वाला समुदाय अब अन्य उभरती राजनीतिक पार्टियों की ओर झुक रहा है.
भाजपा सरकार के तहत, राज्य हिजाब संकट से गुजरा, जिसने अंतरराष्ट्रीय देशों का ध्यान आकर्षित किया और समुदाय को स्कूल और पूर्व-विश्वविद्यालय स्तर पर विभाजित किया. इसके बाद, हिंदू मंदिरों के परिसर में मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार के आह्वान और बदले की हत्याओं ने उनकी मानसिकता पर बुरा असर डाला.
आजादी के 75वें वर्ष में वीर सावरकर के फ्लेक्स लगाने पर मेंगलुरु कुकर विस्फोट और हिंदू कार्यकर्ताओं को चाकू मारने वाले कुछ असमाजिक तत्वों की कार्रवाई का खामियाजा पूरे समुदाय को भुगतना पड़ा.कर्नाटक पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई हिंसा की घटनाओं की जांच ने उन्हें घेर लिया.
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने केवल हिंदू पीड़ितों के आवासों पर जाकर एक संदेश दिया, जो भाजपा कार्यकर्ता थे, लेकिन मुस्लिम पीड़ितों से मिलने तक की जहमत नहीं उठाई.स पर विपक्ष के हंगामा करने के बावजूद भाजपा सरकार ने इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया. कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने कहा कि मुस्लिम समुदाय इस नफरत के हकदारोहीं है, उन्होंने देश के उत्थान में बराबर का योगदान दिया है.
हालांकि इससे विधानसभा चुनाव के लिए एक टोन सेट हो गया. कांग्रेस ने भी जीत की संभावना को प्रभावित करने वाले वोटों के ध्रुवीकरण को देखते हुए टिकट आवंटित करते समय हिंदू उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी.
रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मोहम्मद हनीफ ने कहा कि मुसलमानों ने कांग्रेस पार्टी पर आंख मूंदकर भरोसा करना बंद कर दिया है. उन्होंने कहा, चुनाव से पहले कांग्रेस से 224 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को कम से कम 30 टिकट देने की मांग की गई थी. समुदाय के नेताओं को उम्मीद थी कि कम से कम 22 टिकट दिए जाएंगे. कांग्रेस वास्तव में भाजपा से डर गई है.
उन्होंने कहा कि मुसलमानों ने आंख मूंदकर कांग्रेस को वोट दिया है. उनका कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए जहां भी कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही, वे (मुस्लिम) समानांतर विकल्पों की तलाश कर रहे हैं.
हनीफ ने कहा कि इस पर धार्मिक नेताओं ने चर्चा की है और फैसला लिया गया है. चन्नपटना और दशरहल्ली जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में, जद (एस) कांग्रेस की तुलना में एक बेहतर विकल्प है. न केवल मुस्लिम, बल्कि जैन, बौद्ध या अल्पसंख्यकों की 20 प्रतिशत आबादी के किसी भी प्रतिनिधि को भाजपा ने कैबिनेट में जगह नहीं दी.
कांग्रेस ने 224 विधानसभा सीटों में से 14 मुस्लिमों को टिकट दिया है. इनमें ज्यादातर वरिष्ठ नेता हैं जो अपने दम पर जीत सकते हैं. पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ शिगगांव निर्वाचन क्षेत्र से यासिर अहमद खान पठान को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है़.
जद (एस) ने सीएम इब्राहिम को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. उन्होंने इस बार 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.इस बीच, राज्य में तनाव के बीच, तबस्सुम शेख के ह्यूूमैनिटीज स्ट्रीम में सेकंड पीयूसी (कक्षा 12) बोर्ड परीक्षा में टॉपर के रूप में उभरने की खबर ने राज्य भर में सकारात्मक संदेश दिया है.
एसडीपीआई के उम्मीवार से दक्षिण कन्नड़ में बहस
दक्षिण कन्नड़ जिले के बेल्लारे में पिछले साल 26 जुलाई की रात को बाइक सवार हमलावरों ने नेतारू (32) की चाकू गोदकर हत्या कर दी थी.एसडीपीआई आगामी विधानसभा चुनाव में 19 उम्मीदवारों को मैदान में उतार रही है. अल्पसंख्यकों की पार्टी के रूप में पहचानी जाने वाली एसडीपीआई को चार से पांच सीटें जीतने और कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश करने की उम्मीद है. सूत्रों के मुताबिक एसडीपीआई पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यू.टी. खादर को मंगलुरु (उलाल) विधानसभा क्षेत्र में कड़ी टक्कर दे सकती है.
पार्टी आंदोलनकारी राजनीति पर जोर देती रही है.एसडीपीआई के राष्ट्रीय सचिव रियाज फरंगीपेट ने कहा कि उनकी पार्टी न केवल चुनाव के दौरान सक्रिय रहती है, बल्कि साल भर वह देश में में किसी न किसी मुद्दे पर लोगों का प्रतिनिधित्व करती है.उन्होंने कहा, सत्ता में नहीं होने के बावजूद एसडीपीआई यह सुनिश्चित करती है कि सरकार की योजनाएं गरीबों तक पहुंचे.
उन्होंने कहा, अन्य राजनीतिक दल जिन्होंने ऑनलाइन सहायता केंद्र खोले हैं, वे अपनी सेवाओं के लिए पैसा वसूल रहे हैं, लेकिन एसडीपीआई इसे मुफ्त में कर रहा है.मैंगलुरु (उलाल) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे फरंगीपेट ने कहा, हम सत्ता के भूखे नहीं हैं. हम सत्ता का हिस्सा बनना चाहते हैं. इसलिए हम केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां हम जीत सकते हैं.
नेतारू की हत्या के मामले में जेल में बंद इस्माइल शफी बेल्लारे पुत्तूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. हत्या के आरोपी उम्मीदवार को मैदान में उतारने के एसडीपीआई के फैसले ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं. यहां तक कि फरंगीपेट पर भी देशद्रोह के आरोप लगे हैं और उनकी गतिविधियों पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की कड़ी नजर है.
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस से मेंगलुरु सीट छीनने के लिए एसडीपीआई ने फरंगीपेट के रूप में एक दुर्जेय उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है.
फरंगीपेट पर 12 जुलाई, 2022 को बिहार के फुलवारीशरीफ क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. जांच में कथित तौर पर आरोपी व्यक्तियों के साथ उसके संबंध का पता चला था. एनआईए ने भी फरंगीपेट के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.
उसके खिलाफ दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलथांगडी, मंगलुरु दक्षिण, कोनाजे और मंगलुरु उत्तर में अन्य मामले भी दर्ज हैं. उन पर समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने और पुलिसकर्मियों की ड्यूटी में बाधा डालने के आरोप हैं.
फरंगीपेट ने मंगलुरु निर्वाचन क्षेत्र के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के लिए एक विशाल रैली निकाली थी. सूत्रों ने कहा कि हिजाब विवाद और मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार के आह्वान के मद्देनजर एसडीपीआई आक्रामक रूप से कांग्रेस उम्मीदवार खादर के खिलाफ प्रचार कर रही है.
खादर इस निर्वाचन क्षेत्र से 2008 के बाद से तीन बार भाजपा उम्मीदवारों को हराकर जीते हैं. 2018 में खादर ने बीजेपी के संतोष कुमार राय बोलियारू को 19,000 से ज्यादा वोटों से हराया था. बीजेपी ने 1994 से 2004 के बीच लगातार तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी.
एक प्रगतिशील नेता के रूप में पहचाने जाने वाले खादर को इस बार मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र में एसडीपीआई से कड़ी टक्कर मिल रही है. यह एकमात्र निर्वाचन क्षेत्र था, जिसे कांग्रेस ने 2018 में दक्षिण कन्नड़ जिले में जीता था, अन्य सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा था.
उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए फरंगीपेट ने कहा, बड़े आंदोलन करने वाले लोगों के खिलाफ हमेशा मामले दर्ज किए जाते हैं. हम आईपीएस अधिकारी संजीव भट को जेल जाते हुए देख सकते हैं. हमारे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जेल गए हैं। मैं मामले में लड़ूंगा. मेरे खिलाफ कोर्ट में केस है.
नेतारे हत्याकांड के आरोपी शफी बेल्लारे के बारे में पूछे जाने पर उसने कहा कि उनकी गिरफ्तारी पूर्व नियोजित थी.उन्होंने दावा किया कि बेल्लारे और उनके भाई इकबाल बेल्लारे को संघ परिवार के दबाव में गिरफ्तार किया गया है.फरंगीपेट ने कहा, हम अदालत में उनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाएंगे.
नेट्टारे की हत्या से पहले स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में बेल्लारे को एसडीपीआई उम्मीदवार के रूप में चुना गया था, लेकिन घोषणा लंबित थी, फरंगीपेट ने दावा किया कि जेल से चुनाव लड़ना भारत में कोई नई बात नहीं है.फरंगीपेट ने कहा, एसडीपीआई ने अपना खुद का वोट बैंक बनाया है. अगर बेल्लारे चुने जाते हैं, तो वह शोषितों और दलितों की आवाज बनेंगे, अन्यथा वह अपने सामाजिक कार्यों को जारी रखेंगे.