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रतन टाटा का टाटा ट्रस्ट मदरसा कार्यक्रम: दीनी और दुनियावी शिक्षा का संगम

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

भारत में मुस्लिम समुदाय देश की कुल आबादी का लगभग 14.23% है, लेकिन विकास के कई मानकों में यह समुदाय पिछड़ा हुआ है. सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006) के अनुसार, मुसलमानों की साक्षरता दर केवल 59.1% थी, और 6-14 वर्ष के बच्चों में से एक चौथाई से अधिक या तो कभी स्कूल नहीं गए या उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. केवल 23.9% मुसलमानों ने मैट्रिकुलेशन पूरा किया, जबकि यह दर राष्ट्रीय स्तर पर 42.5% है. इस स्थिति में सुधार के लिए मदरसा कार्यक्रम को महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

टाटा ट्रस्ट द्वारा शुरू किए गए मदरसा कार्यक्रम का उद्देश्य मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना और समकालीन शैक्षणिक तरीकों को शामिल करना है. यह कार्यक्रम मदरसा शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण विधियों जैसे बाल-केंद्रित और संवादात्मक पद्धतियों का प्रशिक्षण प्रदान करता है. इसके अलावा, यह कार्यक्रम शिक्षण में तकनीकी सहायता और गतिविधि-आधारित शिक्षा के साथ बच्चों को गणित, विज्ञान और भाषाओं में दक्षता बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है.

कार्यक्रम के अंतर्गत मदरसा शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के अलावा, बच्चों के लिए विशेष शिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है, जहाँ उन्हें सुनने, पढ़ने, लिखने और गणित व विज्ञान जैसे विषयों में बेहतर बनने का अवसर मिलता है.

टाटा ट्रस्ट का “आईडीडी” और “आईटीई” जैसे मॉड्यूल भी पेश करना एक अनूठी पहल है. आईटीई के माध्यम से बच्चों को प्रौद्योगिकी के उपयोग से संबंधित परियोजनाओं पर काम करने का मौका मिलता है, जबकि आईडीडी के तहत इस्लामी शिक्षा को विज्ञान और गणित के साथ जोड़कर बच्चों को यह सिखाया जाता है कि इस्लामी शिक्षा विज्ञान से अलग नहीं है.

इस कार्यक्रम का प्रभाव 5,000 से अधिक बच्चों तक पहुँचा है और यह विभिन्न राज्यों में विस्तार कर रहा है.ट्रस्ट ने अब तक 400 से अधिक मदरसों के साथ साझेदारी की है, जिसमें 75 मॉडल मदरसे शामिल हैं.

मदरसा बोर्डों और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय जैसे सरकारी निकायों के साथ मिलकर यह कार्यक्रम मदरसों में शैक्षणिक प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा है. इसका उद्देश्य गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में सुधार के साथ उच्च स्तर की सोच और डिजिटल कौशल को विकसित करना है.

टाटा ट्रस्ट के इस कार्यक्रम से न केवल मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो रहा है, बल्कि यह मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक भविष्य के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त कर रहा है.

उत्तर प्रदेश भारत में शिक्षा के मामले में निचले पायदान पर है, लेकिन यहाँ सबसे अधिक मदरसे भी हैं। ‘मदरसा’ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जो किसी भी शैक्षणिक संस्थान को दर्शाता है. वर्तमान में, यह शब्द विशेष रूप से इस्लामिक शिक्षा केंद्रों के लिए उपयोग होता है. ज्यादातर मदरसों में गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं, जो अक्सर कक्षा 5 तक ही पढ़ाई करते हैं और फिर या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या उन्हें नियमित स्कूलों में जाने का अवसर नहीं मिलता। इससे वे उच्च शिक्षा से वंचित हो जाते हैं.

इस स्थिति को बदलने के लिए टाटा ट्रस्ट का ‘मदरसा सुधार कार्यक्रम’ (MIP) काम कर रहा है. यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के वाराणसी और जौनपुर जिलों में चल रहा है, जहाँ 50 मदरसे और लगभग 10,000 बच्चे इस पहल से लाभान्वित हो रहे हैं. कार्यक्रम का उद्देश्य इन मदरसों को आधुनिक बनाना और उन्हें समकालीन पाठ्यक्रम व शिक्षण सामग्री से जोड़ना है ताकि मदरसा छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला लेने में मदद मिल सके.

इस पहल में ट्रस्ट के साथ दो स्थानीय गैर-सरकारी संगठन भागीदार हैं – वाराणसी में पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (PVCHR) और जौनपुर में आज़ाद शिक्षा केंद्र (ASK)। मदरसों की प्रबंधन समितियाँ, शिक्षक और स्थानीय समुदाय भी इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से शामिल हैं.

MIP का पहला चरण 2005 में उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा तक पहुँच में सुधार करना था। 2008 से, ट्रस्ट ने इस पहल को बढ़ाने के लिए गैर-लाभकारी संस्था नालंदा के साथ सहयोग किया। 2013 से 2018 के बीच, MIP को बिहार और झारखंड के मदरसों तक विस्तारित किया गया, जिससे 45,000 से अधिक बच्चे लाभान्वित हुए। अब तक, 100,000 से अधिक बच्चे, जिनमें अधिकांश लड़कियाँ शामिल हैं, इस पहल का हिस्सा बन चुके हैं।

कार्यक्रम का ध्यान बाल-केंद्रित शिक्षण और गतिविधि-आधारित पद्धतियों पर है, जो छात्रों और शिक्षकों के दृष्टिकोण में बदलाव ला रहा है. ट्रस्ट ने ‘मदरसा फैसिलिटेटर’ भी नियुक्त किए हैं, जो शिक्षकों के साथ साप्ताहिक रूप से मिलकर नवीन शिक्षण तकनीकों को साझा करते हैं। ट्रस्ट के कार्यक्रम अधिकारी विवेक सिंह कहते हैं, “हम कक्षा में संवाद और चर्चा को बढ़ावा देना चाहते हैं, गणित और विज्ञान जैसे विषयों को रुचिकर ढंग से पढ़ाना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि बच्चों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाए.”

तिघरा गांव के मदरसा जामिया दारुल-उल-उलूम हनफिया में MIP के माध्यम से किए गए सुधारों से बड़ा परिवर्तन आया है। यहाँ 119 छात्र पढ़ते हैं और उनके माता-पिता ने उन्हें अपनी इच्छा से यहाँ दाखिल कराया है। मदरसे के प्रबंधक अब्दुल हई कहते हैं, “मांग इतनी बढ़ गई है कि हमें जगह की कमी के कारण छात्रों को वापस भेजना पड़ा है”

इस पहल में पुस्तकालय, शिक्षक प्रशिक्षण, परियोजना-आधारित शिक्षण, और सबसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी ने मदरसों को बदलने में मदद की है 22 वर्षीय उर्दू शिक्षिका शबनम शाहीन कहती हैं, “चार साल पहले, जब मैंने यहाँ पढ़ाना शुरू किया था, तब हमारे बच्चे पढ़ाई में कमजोर थे, लेकिन अब उनमें बहुत सुधार हुआ है.”

MIP का सबसे खास पहलू यह है कि यह एकता को बढ़ावा देता है। तिघरा गाँव के मदरसे में 36 हिंदू बच्चे पढ़ते हैं. किसान मुखू प्रजापति का बेटा विष्णु उनमें से एक है, जिसने हाल ही में उर्दू में सबसे अच्छा छात्र होने का पुरस्कार जीता है. विष्णु पहले सरकारी स्कूल में पढ़ता था, लेकिन अब मदरसे में पढ़ाई करने के बाद उसमें काफी सुधार हुआ है. मदरसे के शिक्षक उमेश कुमार चौधरी भी इस पहल से बेहद प्रभावित हैं। वह कहते हैं, “पहले बहुत कम लोग मुझे जानते थे, लेकिन अब मदरसा शिक्षक होने के कारण गाँव में मुझे काफी सम्मान मिलता है.”

टाटा ट्रस्ट द्वारा शुरू किया गया ‘मदरसा सुधार कार्यक्रम’ न केवल शिक्षा में सुधार ला रहा है, बल्कि सामाजिक एकता और समावेशिता को भी बढ़ावा दे रहा है.

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