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खास रिपोर्ट: संघ नेताओं और पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों की मुलाकात का मतलब ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

किसी को काफिर कहना , अभद्र भाषा, दंगे, मॉब लिंचिंग, सरकार का मुसलमानों के कुछ घरों पर बुलडोजर चलाना और काशी-मथुरा विवाद, क्या यही देश के मुसलमानों के अहम मसले हैं ? या मुसलमानों को हक, हकूक चाहिए ? आजादी के बाद से अब तक यह कौम उस तरह से क्यों नहीं उभर पाई जैसे सिख, जैन या दूसरी कौमें ? यकीन न हो तो सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पढ़ लें.

इसके बावजूद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर जमीरुद्दीन शाह, बड़े व्यवसायी सईद शेरवानी और किसी जमाने में प्रखर पत्रकार रहे शाहिद सिद्दीकी जैसी शख्सियत जब देश के मुसलमानों के अहम मसलों पर बात न कर गैर जरूरी मुद्दे उठाए तो निश्चित ही इसपर संदेह होना लाजमी है.

यह बात यहां इसलिए कहने की जरूरत पड़ी कि कुछ दिनों पहले मुसलमानों के इन नए ‘ठेकेदारों’ की नजीब जंग के घर पर आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार साहित संघ के कुछ अन्य लोगों के साथ मैराथन बैठक हुई. बैठक तकरीबन तीन घंटे तक चली. बताया गया कि इस गुप्त बैठक में जमीयत उलेमा ए हिंद और जमात इस्लामी हिंद सहित कुछ अन्य मुस्लिम अदारों के लोग भी शामिल थे. मजेदार बात यह है कि इस दौरान संघ के नेताओं ने साफ कर दिया कि वे तमाम हिंदू संगठनों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. यानी दंगा फसाद करने वालों से इनका न कोई वास्ता है और न ही पकड़. यह सब करने कराने का काम कोई और संगठन करता है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब दंगाइयों पर संघ का कोई नियंत्रण नहीं तो फिर इस महत्वपूर्ण मसले पर इससे क्यों बात की जाए ? फिर तो उससे बात की जानी चाहिए जो हिंदू, मुसलमान कर देश में वैमनस्य फैला रहा है ?

मथुरा और काशी का मुद्दा उछालने के पीछे संघ के अनुषांगिक संगठनों का हाथ है. इस मामले में विश्व हिंदू परिषद आगे-आगे है. फिर भी संघ इससे इनकार करे तो दाल में अवश्य कला प्रतीत होता है. एक और अहम बात. घरों पर बुलडोजर सरकारें चला रहीं हैं. तब तो इनमें से किसी शख्स ने मध्यप्रदेश,असम,उत्तर प्रदेश या दिल्ली सरकार से बुलडोजर रूकवाने का कोई प्रयास नहीं किया ? संघ से संबंध बढ़ाने वाले पांच में से तीन सरकारी उच्च पदों पर रहे हैं. क्या उन्हें नहीं पता कि सरकारों की गैरवाजिब कार्रवाई कैसे रोकी जाती है ?

जमीरुद्दीन शाह, एस वाई कुरैशी,नजीब जंग- क्या इनमें से कोई सरकारों का दरवाजा खटखटाने पहुंचा था ? नहीं, तो इन पांचों को सोते, सोते यह कैसे इल्हाम हो गया कि आज वे जो कह रहे हैं वही मुसलमानों का अहम मसला है और उसे वे ठीक कर सकते हैं. ऐसा तो नहीं कि ये पूर्व पदाधिकारी एक विवादास्पद संगठन को गैरवाजिब महत्व देकर एक गलत परंपरा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं ? शाहिद और सईद को यहां इतना ज्यादा महत्व देने की जरूरत नहीं, क्यों कि ये पेशेवर लोग हैं. इनकी पहचान इनके धंधे से है. वैसे यह भी खुली किताब की तरह है कि पांचों ने अब तक मुस्लिम कौम के लिए ऐसा कुछ नहीं किया जिसे याद रखा जाए.

संघ के नेताओं से बात करते समय होना यह चाहिए था कि जिसे वो ठीक कर सकते हैं उसी पर चर्चा की जाए. मसलन, इसकी सियासी पार्टी भाजपा की कई प्रदेशों में सरकारें हैं. वहां मुसलमानों को नौकरी और जनकल्याणकारी योजनाओं में बराबरी की भागीदारी मिले. बीजपी मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी नहीं दे रही है. उसकी पार्टी में कुछ बड़े मुस्लिम लीडर हैं, जिन्हें दरकीनार कर दिया गया है. उन्हें वापस पॉवर में लाया जाए.कुछ और नए चेहरे इस लिस्ट में शामिल किए जाएं. मुसलमानों की सत्ता और सियासत में भागीदारी बढ़ेगी तो कौम का कल्याण भी अपने आप होगा. अभी अल्पसंख्यक मंत्रालय ही बगैर मुस्लिम लीडर के चल रहा है.

मदरसों पर नजरें रखने के लिए एक ऐसे अधिकारी को तैनात किया गया है, जो अपने अल्प ज्ञान से देशभर के मदरसों में खलबली मचाए हुए है. संघ वालों से बात इसपर नकेल डाला जाए. चुनाव में बीजोपी मुसलमानों को टिकट देती. इनकी बातचीत का अहम मोजू यह होना चाहिए था. बीजेपी की सरकारों वाले प्रदेश में मुसलमानों पर ज्यादती न हो, उसे रोकने का पोख्ता प्रबंध किया जाना चाहिए. मगर इसपर कोई बात नहीं की जा रही है. मुसलमानों के नए ठेकेदारों की नियत पर इसलिए भी संदेह किया जा रहा है कि वे हर शहर में संघ के नेताओं के साथ बैठक करने का इरादा रखते हैं. क्यांे ? क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा को मदद पहुंचाना चाहते हैं ? ओवैसी बेकार साबित हुए हैं क्या ? इस मुद्दे पर ओवैसी को साथ क्यों नहीं रखा गया ? क्या इससे इनका खेल बिगड़ जाएगा ? क्या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से बीजेपी खतरा महसूस कर रही है, इसलिए तमाम तरह के फार्मूले अपनाए जा रहे हैं? चलते-चलते एक-दो अहम सवाल और. मुसलमानों के नए ठेकेदारों ने इससे पहले दिल्ली दंगा, तीन तलक, राममंदिर फैसला, अनुच्छेद 370, सीएए, मदरसा विवाद, असम मुसलमान ज्यादती, मुस्लिम संगठों पर बैन, धर्म परिवर्तन के नाम पर उलेमा को जेल में डालने जैसे मुद्दों पर वे खामोश क्यों रहे ? उन्हें मुसलमानों की नई ठेकेदारी किसने दी ?

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