हर रोज़ एक किलोमीटर तैरकर स्कूल पहुँचना: अब्दुल मलिक की मिसाल बन चुकी है एक प्रेरणा
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मुस्लिम नाउ विशेष
शायद आपने “पढ़ने के लिए पुल पार करने वाले बच्चे” या “दूर-दराज़ के गांवों में पैदल स्कूल जाने वाली लड़कियों” की कहानियाँ सुनी होंगी। लेकिन आज की यह कहानी उन सबसे अलग है। यह एक ऐसे शिक्षक की दास्तान है जिसने दो दशकों से भी अधिक समय तक हर सुबह एक किलोमीटर लंबी नदी तैरकर स्कूल पहुँचना जारी रखा — सिर्फ इसलिए कि उसके छात्रों की पढ़ाई कभी न छूटे।
हम बात कर रहे हैं अब्दुल मलिक की — केरल के एक छोटे से गाँव में रहने वाले गणित शिक्षक, जिनकी प्रतिबद्धता ने न केवल उनके छात्रों का भविष्य संवारा बल्कि पर्यावरण और अनुशासन के क्षेत्र में भी नई राह दिखाई।
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नदी नहीं रोकी, तूफान नहीं डिगा पाया, साँप नहीं डरा सके…
अब्दुल मलिक का स्कूल उनके घर से लगभग 12 किलोमीटर दूर था। अगर वे सार्वजनिक परिवहन का सहारा लेते, तो उन्हें तीन घंटे लगते — जिसमें बस बदलना, जाम से जूझना और जंगलों से होकर गुजरना शामिल था।
पर उन्होंने एक अनोखा रास्ता चुना।
हर सुबह वे अपने कमर में एक ट्यूब या फ्लोट बांधते, अपने कपड़े और किताबें एक प्लास्टिक बैग में लपेटकर सिर पर रखते और कंतीपुरा नदी में कूद जाते। इस एक किलोमीटर लंबी तैराकी को वे कभी बाधा नहीं मानते थे, बल्कि उनका मानना था — “शिक्षा की मशाल जलती रहनी चाहिए, चाहे उसके लिए पानी की लहरें भी क्यों न पार करनी पड़ें।”
सिर्फ शिक्षक नहीं, रोल मॉडल भी
उनकी यह तपस्या एक-दो दिन की नहीं, लगातार 20 वर्षों तक चली। इस दौरान नदियों में बाढ़ आई, बारिशें हुईं, कई बार जहरीले जल-साँप भी दिखे, लेकिन अब्दुल मलिक का इरादा कभी नहीं डगमगाया।
उनकी समयबद्धता और समर्पण के कारण स्कूल में उनकी उपस्थिति रिकॉर्ड स्तर पर थी — 20 वर्षों में एक भी दिन गैरहाजिर नहीं हुए।
उनके इस अनुशासन और प्रेरणा के चलते, सरकार ने उन्हें स्कूल का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया। आज वे न केवल गणित पढ़ाते हैं, बल्कि छात्रों को तैराकी भी सिखाते हैं, ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें।
नदी को मां जैसा सम्मान, अब उसके संरक्षण के लिए कर रहे काम
जिस नदी ने उन्हें स्कूल पहुँचाने में मदद की, अब उसके प्रति उनकी जवाबदेही भी उतनी ही बड़ी है। अब्दुल मलिक अब स्थानीय युवाओं के साथ मिलकर नदी सफाई अभियान चला रहे हैं। उन्होंने छात्रों को भी इस मुहिम में जोड़ा है।
हर महीने वह स्कूल के बच्चों के साथ नदी किनारे जाते हैं, प्लास्टिक कचरा हटाते हैं, जैविक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाते हैं और स्थानीय प्रशासन से सहयोग लेकर नदी के किनारों को हराभरा बनाने की कोशिश करते हैं।
उनका मानना है — “मैंने इस नदी से रास्ता माँगा, अब मैं इसके लिए रास्ता साफ़ कर रहा हूँ।”

अंतरराष्ट्रीय सराहना और स्थानीय सम्मान
अब्दुल मलिक की कहानी धीरे-धीरे सोशल मीडिया के ज़रिये दुनिया भर में फैल गई। कई अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों ने उनकी सराहना की। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कुछ शोध छात्रों ने उन पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है।
केरल सरकार ने उन्हें ‘ग्लोरी ऑफ एजुकेशन अवॉर्ड’ से सम्मानित किया। वहीं स्थानीय लोगों ने उन्हें “तैरते शिक्षक” (The Floating Teacher) के नाम से नवाज़ा।

युवाओं के लिए सीख: लगन ही असली प्रेरणा है
इस दौर में जहाँ स्मार्टफोन, तकनीक और शॉर्टकट्स ने युवाओं की ज़िंदगी में व्यस्तता और बहाने भर दिए हैं, अब्दुल मलिक जैसे लोग यह याद दिलाते हैं कि लगन, अनुशासन और कर्मशीलता ही असली सफलता की कुंजी है।
उनकी यह जीवनगाथा न केवल शिक्षकों के लिए, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किलों को देख कर रुक जाता है।
अंतिम संदेश
“मैं सिर्फ शिक्षक नहीं हूँ, मैं एक रास्ता हूँ — उन बच्चों के लिए जो हर हाल में सीखना चाहते हैं, और उन शिक्षकों के लिए जो हर हाल में सिखाना नहीं छोड़ते।” — अब्दुल मलिक