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भिवंडी के पावरलूम उद्योग का पतन, पसमांदा मुस्लिम के नाम पर राजनीति चरम पर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, भिवंडी, महाराष्ट्र

भारत में एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी पसमांदा मुसलमानों के नाम पर उन्हें समाज के अन्य तबकों से अलग दिखाने और विभाजित करने की कोशिश करती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इस पार्टी ने पिछले 12 वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद इस वर्ग की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं किया है। परिणामस्वरूप, आज भी मुसलमानों के पिछड़े वर्गों को संघर्षपूर्ण जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

भिवंडी में कपड़ा बुनने वाले जुलाहा, अंसारी, धुनिया बिरादरी के लोग आज भी पुरानी तकनीकों और मशीनों पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र में पिछली एक दशक से कोई खास विकास नहीं हुआ है। जो पार्टी पसमांदा मुसलमानों के उत्थान की बात करती है, उसने भी इस क्षेत्र के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।

मुस्लिम बुनकरों का बढ़ता संकट

भिवंडी में हजारों मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से पावरलूम उद्योग से जुड़े हुए हैं। कपड़ा बुनने का यह व्यवसाय कभी समृद्ध हुआ करता था, लेकिन अब बदहाल स्थिति में पहुंच चुका है। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार की नीतियां, जीएसटी, विमुद्रीकरण, बिजली की बढ़ती दरें और सस्ते चीनी उत्पादों ने इस सेक्टर को गर्त में धकेल दिया है।

70 वर्षीय बुजुर्ग बुनकर अब्दुल सत्तार बताते हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन करघों पर काम करते हुए बिताया है। 15 साल की उम्र में भिवंडी आए सत्तार कहते हैं, “पहले इस उद्योग में स्थायित्व था, मजदूरी कम थी लेकिन काम की गारंटी थी। अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कई बुनकरों को अपना पुश्तैनी पेशा छोड़ना पड़ा है।”

करघों का बंद होना और बढ़ती बेरोजगारी

भिवंडी पावरलूम वीवर्स फेडरेशन के अध्यक्ष अब्दुल रशीद ताहिर मोमिन के अनुसार, “भिवंडी में करीब 6.5 लाख पावरलूम थे, जो देश के कुल पावरलूम का 33 प्रतिशत हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में लगभग 30-40% करघे बंद हो चुके हैं, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं।”

एक समय था जब यह उद्योग खेती के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता था। लेकिन अब पावरलूम बंद होने से 2.5 लाख से अधिक लोग अपनी आजीविका की तलाश में दूसरे शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो गए हैं।

तकनीकी पिछड़ापन और आर्थिक तंगी

भिवंडी के पावरलूम उद्योग में अधिकांश करघे 19वीं सदी की पुरानी तकनीक पर आधारित हैं। आधुनिक स्वचालित करघों की तुलना में ये करघे महंगे, धीमे और कम प्रतिस्पर्धी हैं।

54 वर्षीय इश्ताक अहमद अंसारी, जो 110 पावरलूम के मालिक थे, ने चार साल पहले अपना व्यवसाय बंद कर दिया और अब ठेकेदारी कर रहे हैं। वे कहते हैं, “पुरानी मशीनों को बदलने के लिए बुनकरों के पास न तो पैसा है और न ही सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद मिलती है।”

धागे की बढ़ती कीमतें और सरकारी उदासीनता

भिवंडी के बुनकर धागे की कीमतों में अस्थिरता से भी परेशान हैं। पावरलूम मालिकों का कहना है कि धागे की कीमतों में अनियमितता और कालाबाजारी से उनका मुनाफा कम हो गया है।

पंचपीर इस्लामपुरा कुरैश पावरलूम एसोसिएशन के अध्यक्ष सुहैल अंसारी ने बताया, “यार्न (धागे) की कीमत महीने में एक बार से अधिक नहीं बदलनी चाहिए, लेकिन अब यह कभी भी बदल दी जाती है। इससे बुनकरों का बजट बिगड़ जाता है और वे घाटे में चले जाते हैं।”

महाराष्ट्र पावरलूम फेडरेशन के अध्यक्ष फैजान आजमी का कहना है, “कपास और सूती धागे की आपूर्ति में कालाबाजारी ने उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया है। सरकार से कई बार मांग करने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।”

भिवंडी पावरलूम उद्योग की गिरती हालत

भिवंडी की कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। 70 वर्षीय अब्दुल सत्तार, जो पिछले कई दशकों से इस उद्योग में कार्यरत हैं, कहते हैं कि जब वे 15 साल की उम्र में भिवंडी आए थे, तब यहाँ के पावरलूम उद्योग में जबरदस्त उछाल था। लेकिन आज, हालात बिल्कुल विपरीत हो चुके हैं। मजदूरी कम हो गई है, काम के घंटे बढ़ गए हैं और रोज़गार के अवसर लगातार घटते जा रहे हैं।

भिवंडी पावरलूम वीवर्स फेडरेशन के अध्यक्ष अब्दुल रशीद ताहिर मोमिन के अनुसार, हाल के वर्षों में लगभग 30% करघे बंद हो चुके हैं।

मुख्य कारण: बढ़ती लागत और चीनी आयात

भिवंडी के पावरलूम उद्योग को सस्ते चीनी आयात और सरकार की अनदेखी ने बुरी तरह प्रभावित किया है। धागे की कीमतों में अस्थिरता, महंगी बिजली और करों के बढ़ते बोझ ने इस उद्योग को ठप कर दिया है। सरकार द्वारा लगाए गए जीएसटी और अन्य करों के कारण भारतीय उत्पादक सस्ते चीनी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं।

भिवंडी में लगभग 300,000 पावरलूम अब भी काम कर रहे हैं, लेकिन इनका भविष्य अनिश्चित है। पुराने करघे और धीमी उत्पादन दर के कारण यह उद्योग आधुनिक तकनीकों से मुकाबला नहीं कर पा रहा।

मजदूरों की स्थिति और रोजगार संकट

54 वर्षीय इश्ताक अहमद अंसारी, जो 110 पावरलूम के मालिक थे, चार साल पहले अपना व्यवसाय बंद करने को मजबूर हो गए। अब वे एक अन्य फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम कर रहे हैं।

अंसारी कहते हैं, “कभी यह उद्योग खेती के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र था। इसे इस हालत में देखना बेहद दुखद है।”

पावरलूम उद्योग में काम करने वाले मजदूरों को न सिर्फ रोजगार का संकट झेलना पड़ रहा है, बल्कि उनकी कार्यस्थल की स्थितियाँ भी बहुत खराब हैं। खराब हवादार कार्यशालाएँ, लंबे कार्य घंटे और कम वेतन ने इन मजदूरों की जिंदगी को और कठिन बना दिया है।

पावरलूम उद्योग की गिरावट के प्रमुख कारण

  1. बढ़ती धागे की कीमतें: यार्न की कीमतें लगातार अस्थिर बनी हुई हैं। भिवंडी में उत्पादित स्टॉक पर शुल्क लगाया जाता है जबकि चीन से आयात किए गए उत्पादों को इससे छूट दी जाती है।
  2. उच्च जीएसटी दरें: 12% जीएसटी, महंगी बिजली और अन्य करों ने भारतीय कपड़ा उद्योग को महंगा बना दिया है।
  3. पुरानी तकनीक: भिवंडी में अभी भी 19वीं सदी के पावरलूम काम कर रहे हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर स्वचालित करघे अपनाए जा रहे हैं।
  4. सरकारी समर्थन की कमी: सरकार न ही सब्सिडी दे रही है और न ही तकनीकी उन्नयन में मदद कर रही है।
  5. कालाबाजारी: सूती धागे की कालाबाजारी उद्योग को बुरी तरह प्रभावित कर रही है।

समाधान और सुधार के उपाय

  1. तकनीकी उन्नयन: यदि सरकार इस उद्योग को आधुनिक तकनीक से जोड़ने के लिए सब्सिडी और सस्ते ऋण प्रदान करे, तो यह उद्योग फिर से खड़ा हो सकता है।
  2. स्थिर कीमतों की नीति: यार्न की कीमतों में अस्थिरता को रोकने के लिए सरकार को ठोस नीति बनानी होगी।
  3. कर और शुल्क में राहत: चीनी उत्पादों को दी जाने वाली छूट को समाप्त कर भारतीय उत्पादकों को समान अवसर देने की जरूरत है।
  4. सरकारी सहायता: मजदूरों के लिए बेहतर कार्य परिस्थितियों और रोजगार सुरक्षा की गारंटी सरकार को देनी होगी।
  5. निर्यात को बढ़ावा: यदि भारतीय वस्त्रों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया जाए, तो इससे इस उद्योग को नई ऊर्जा मिल सकती है।

काबिल ए गौर

भिवंडी का पावरलूम उद्योग कभी भारत की आर्थिक रीढ़ था, लेकिन आज यह अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। मजदूरों की बदहाल स्थिति, पुराने उपकरणों और सरकारी उपेक्षा ने इस उद्योग को कमजोर बना दिया है। यदि सरकार और उद्योगपति मिलकर इस सेक्टर को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाते हैं, तो यह उद्योग फिर से भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

सरकार को चाहिए कि वह पसमांदा मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने के बजाय उनकी वास्तविक समस्याओं का समाधान करे। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में भिवंडी का पावरलूम उद्योग इतिहास का हिस्सा बन जाएगा।*तस्वीरें सोशल मीडिया से

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