Muslim World

UAE कोरोना में हजारों ने गंवाईं नौकरी, मानसिक तनाव का शिकार

कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभाव से केवल भारत में नहीं, संयुक्त अरब अमीरात जैसे समृद्ध देशों के लोगों को भी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। यूएई में नौकरी जाने से अचानक दिनचर्या में आए बदलाव के चलते लोग मानसिक तनाव का शिकार होने लगे हैं।
यूएई (UAE) में भारतीय प्रवासी प्रकाश देवडिगा का कहना है कि महामारी ने उनके जीवन को उलट दिया। भारत के मंगलोर के 40 वर्षीय प्रकाश देवडिगा दो दशक से यूएई में रह रहे हैं। उनके पास एक अदद अच्छी नौकरी थी। कोविड-19 महामारी ने उनका सपना को चकनाचूर कर दिया। वह सेल्समैन की हैसियसत से प्रति माह 7,000 दिरहम कमा रहे थे। उनकी जाॅब एक प्राइवेट कंपनी में थी। महामारी में नौकरी चली गई।

भारत लौटने को वीजा नहीं

देवडिगा यूएई में पाकिस्तानी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं । एक बच्चे की उम्र 11 और दूसरे की 8 वर्ष है। दोनों के पास भारतीय पासपोर्ट है। नौकरी खोने के बाद बच्चों की स्कूल फीस नहीं दे पा रहे। इस कारण उनके बच्चांे को ई-लर्निंग क्लास से वंचित कर दिया गया। वह बताते हैं- “हर साल फरवरी में, उनकी कंपनी उन्हें बच्चों की स्कूल फीस के भुगतान के लिए ऋण देती है। इसके एवज में हर महीने एक निश्चित राशि वेतन से कटती थी। महामारी के कारण इस बार ऋण नहीं ले जाए। नतीजतन, बच्चों के साल भर की स्कूल फीस का जुगाड़ नहीं हो पाया।’’

वीजा देने से इनकार

उनकी पत्नी पाकिस्तानी होने के कारण उन्हें भारत का वीजा नहीं मिल पा रहा है। अपने बीवी, बच्चों कोे घर कैसे ले जाएं,  समझ नहीं पा रहे। उनका कहना है कि पत्नी एवं बच्चों को यहां छोड़कर भारत नहीं जा सकते। ऐसे में दो मुल्कों में फँस कर रह गए हैं। यूएई में देवडिगा अकेले नहीं। महामारी ने कई लोगों के जीवन में खलल पैदा की है। घर नहीं जाने एवं नौकरी छूटने से वे एकांकीपन का शिकार हो गए हैं। 30 वर्षीय शोएब सैयद, कर्नाटक के रहने वाले हैं। संयुक्त अरब अमीरात में वह भी सेल्स मैन थे। नौकरी जाने से उनके दिन तनाव में बीत रहे। वह बताते हैं- “ नौकरी जाने पर आत्मविश्वास खो दिया है। हर तरफ अनिश्चितता दिखती है। ‘‘ सैयद कहते हैं-उन्हें पिछले छह महीने से वेतन नहीं मिला। मां कैंसर की मरीज है। उनके साथ रहती है। उनका हाल में भारत में कैंसर का आपरेशन हुआ है। इसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा था। नौकरी खोने के बाद कर्ज नहीं चुका पा रहे। इसके बोझ तले दबे हुए हैं। उनका पारिवारिक वीजा रद्द कर दिया गया है। सैयद बताते हैं कि उनकी मां की चार और कीमोथेरेपी  होनी है। मगर पैसे नहीं हैं।  नए सिरे से नौकरी की तलाश शुरू कर दी है। ‘‘

जिंदगी अनिश्चितता के भवंकर में

मुंबई के 30 वर्षीय अख्तर अनवर खान मुश्किल थोड़ा अलग हैं। उनकी पत्नी पेट से हैं। किसी समय भी डिलीवरी हो सकती है। महामारी ने उन्हें और उनके परिवार को मुश्किल में डाल दिया है। यूएई में जनसंपर्क अधिकारी पीआरओ (PRO) थे। कोरोना में उनकी भी नौकरी चली गई। खान कहते हैं- महामारी ने उन्हें बेचैनी में छोड़ दिया है। उन्हें आख़िरी वेतन 10,000 दिरहम मिला था। अब बेरोजगार हैं। पत्नी की डिलीवरी कैसे हो ? समझ नहीं पा रहे। ” अनवर खान कहते हैं कि महामारी ने उन्हें और उनके परिवार को सड़क पर ला खड़ा किया है। 33 वर्षीय फिलिपिन प्रवासी डेबी डेला क्रूज की स्थिति भी अच्छी नहीं। वह बताते हैं-“ भविष्य इतना अप्रत्याशित होगा, कभी सोचा नहीं था। आगे क्या होने वाला है, अंदाजा नहीं लगा पा रहे।”

मानसिक तनाव के शिकार लोगों को मुथेना के एस्टर क्लिनिक के मनोचिकित्सक  
डॉ. मोहम्मद यूसुफ की सलाहः-
1. सकारात्मक सोचें 2. नए-नए शौक में मन लगाएं 3. संगीत सुनें 4. कोई नया हुनर भी सीख सकते हैं
5. नियमित व्यायाम करें 6. ध्यान लगाएं 7. निराशा या बेचैनी महसूस हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
-पिक्चर/इनपुटः गल्फ न्यूज

नोटः वेबसाइट आपकी आवाज है। विकसित व विस्तार देने तथा आवाज की बुलंदी के लिए आर्थिक सहयोग दें। इससे संबंधित विवरण उपर में ‘मेन्यू’ के ’डोनेशन’ बटन पर क्लिक करते ही दिखने लगेगा।
संपादक