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रमजान के तीसरे अशरे की क्या है अहमियत?

गुलरूख जहीन

रमजान के महीने को दस-दस दिनों के तीन अशरे में बांटा गया है. हर अशरे का अपना-अपना महत्व है. इस हिसाब से देखें तो इस्लामी नजरिए से रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटने की वजह भी है. रमजान के महीने में दुनियाभर के मुसलमान सुबह से शाम तक रोजा रखते हैं.

रमजान, यानी इस्लामी वर्ष में यह महीना सबसे प्रिय और शुभ महीनों में एक है. इस दौरान एक मुसलमान को अनगिनत फायदे होते हैं. गुनाह तो कम होते ही हैं, इस दौरान इबादतगुजार रोजेदार अपने से दबे-कुचले और सामाजिक व माली स्तर से पिछड़े बिरादरी के लागों के बारे में भी अच्छा सोचते और करते हंै.

इस महीने की बरकतें असीमित हैं. इस लिए रमजान को इस्लामिक कैलेंडर का नौवां और बरकतों का महीना भी कहा जाता है. इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार, रमजान के पवित्र महीने को वैश्विक स्तर पर मुसलमानों द्वारा हजरत मुहम्मद (पीबीयूएच) पर कुरान के रहस्योद्घाटन का जश्न मनाने के रूप में मनाया जाता है.

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यह इस्लाम का सबसे आवश्यक स्तंभ है. रोजा एक मुस्लिम अनुष्ठान है जो आत्मा को बुरे और विनाशकारी कार्यों से मुक्त करके शुद्ध करने के लिए भौतिकवादी गतिविधियों से दूर करता है. इस पवित्र महीने में मुसलमान उमरा करना भी पसंद करते हैं. इसका सवाब दोगुना होता है. रमजान के पवित्र महीने में उमरा करना इनाम और लाभ में हज के बराबर है. इसलिए, मुसलमान इस धन्य महीने को अल्लाह के घर (एसडब्ल्यूटी) में बिताने के लिए ज्यादातर रमजान उमरा पैकेज लेते हैं.

रमजान के तीन अशरे का अपना-अपना महत्व और मूल्य है. पहला अशरा है रहमत, जिसका अर्थ है अल्लाह की दया, दूसरा है मगफिरत, जिसका अर्थ है अल्लाह द्वारा क्षमा और अंतिम है निजात, जिसका अर्थ है मोक्ष.तीसरे अशरा के महत्व पर चर्चा करने से पहले आपको बतादें हैं पहले के दो अशरों के बारे में.

पहला अशरा

रहमत रमजान के पहले अशरा से शुरू होता है, जो समृद्धि और आशीर्वाद को दर्शाता है. इस पवित्र महीने की शुरुआत का यह एक सुंदर तरीका है. इस अशरे में, व्यक्ति को अल्लाह से क्षमा मांगनी चाहिए, जो अपनी उम्माह को जीवन और उसके बाद का गुनाह माफ कर देने से ज्यादा कुछ नहीं चाहता है. यह रमजान के मूड में आने का भी एक अद्भुत तरीका है. रमजान के मूड में आते ही मुस्लिम बहनों और भाइयों के प्रति वही करुणा दिखाने लगता है जो अल्लाह हम सभी के लिए हर दम दिखाता है.

दूसरा अशरा

दूसरा अशरा मगफिरत का है. रमजान का दूसरा भाग अल्लाह से माफी और शांति की भीख माँगने को लेकर है. अतीत में अपनी गलतियों के लिए अल्लाह से गहराई से माफी मांगें. अपने तरीके बदलें और जिसने भी आपको ठेस पहुंचाई हो उसे माफ कर दें. अगर अल्लाह (एसडब्ल्यूटी) हमें हमारी गलतियों और गलत कामों के लिए माफ कर सकता है, तो हम अपने भाइयों और बहनों के लिए भी ऐसा ही कर सकते हैं, जिन्होंने जानबूझकर या अनजाने में हमारे साथ गलत व्यवहार किया है.

तीसरा अशरा निजात

रमजान का तीसरा सप्ताह हर लिहाज से महत्वपूर्ण है. यह न केवल इबादत के नजरिए से, बल्कि सामाजिक लिहाज से बेहद खास है.जब अल्लाह हम मुसलमानों को नरक की आग और उसके बाद आने वाले क्रोध से बचने के लिए शरण लेने का विकल्प देता है, तो इसे स्वीकार करना और बुद्धिमानी से इसका उपयोग करना हमारे लिए एक आशीर्वाद होना चाहिए.

इस्लामी कैलेंडर की सबसे महत्वपूर्ण रातों में से एक रमजान के आखिरी 10 दिनों में छिपी हुई है. यह ‘शक्ति की रात’ है, जिसे लैला तुल कद्र भी कहा जाता है, जिसके दौरान कुरान का अनावरण किया गया था जिसने मुस्लिम उम्माह के नेता के रूप में पैगंबर (पीबीयूएच) के मार्ग की शुरुआत को चिह्नित किया था.

आखिरी अशरे की खास घटनाएं और लैला-तुल-कद्र

मुसलमानों को पूरे रमजान के दौरान जितनी बार संभव हो सके सकारात्मक कार्य करना चाहिए और इबादत करनी चाहिए, लेकिन आखिरी अशरे में होने वाली कई महत्वपूर्ण घटनाओं के कारण आखिरी अशरे का विशेष महत्व है. अशरा की अंतिम 9 या 10 रातें निश्चित रूप से प्रत्येक मुसलमान के लिए सबसे महत्वपूर्ण रातें होती है. लैला-तुल-कद्र सबसे शुभ घटना है जो रमजान के अंतिम अशरे में होती है.

यह वह रात है जिसमें कुरान घोषित हुआ है. लैला-तुल-कद्र वह रात है जब अल-कुरान की आयतें पवित्र पैगंबर मुहम्मद (पीबीयूएच) पर उतरीं. इस्लामी साहित्य के अनुसार, लैला-तुल-कद्र पिछली सैकड़ों रातों से बेहतर है. यह रात वास्तव में सर्वशक्तिमान अल्लाह के करीब पहुंचने के लिए जबरदस्त ऊर्जा और शक्ति प्रदान करती है. इसे ‘पावर नाइट’ के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि यह रात रमजान की 27 तारीख को दिखाई देती है.

हालांकि, इस्लामी साहित्य के अनुसार, आपको रमजान की विषम रातों में इसकी तलाश करनी चाहिए. कुरान में कहा गया है, “महिमा की रात एक हजार महीनों से बेहतर है. उस रात फरिश्ते और पवित्र आत्मा उतरती हैं, और आपकी इबादत और दुआ कबूल की जाती है.”

जुम्मा-तुल-विदा

जुम्मा-तुल-विदा रमजान का आखिरी जुमा होता है. रमजान का अंतिम शुक्रवार मुसलमानों के लिए भाग्यशाली दिन माना जाता है. हालाँकि, जब रमजान के दौरान शुक्रवार आता है, तो शुक्रवार की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है. इस प्रकार, जुम्मा-तुल-विदा अशरा के आखिरी शुक्रवार को चिह्नित करता है. यह दिन हर मुसलमान के लिए विशेष है. इस दिन ही सभी को अगले साल तक रमजान के महीने को भारी मन से अलविदा कहना पड़ता है. रमजान का समापन जुम्मा-तुल-विदा पर होता है. इस दिन, मस्जिदों में विशेष दुआएं मांगी जाती हैं. मस्जिदें भी नमाजियों से खचाखच भरी होती हैं.

एतिकाफ

रमजान के आखिरी अशरे में ही एतिकाफ का एहतिमाम होता है. एतिकाफ सुन्नत और आध्यात्मिक गतिविधि है जो एक व्यक्ति को दुनिया से अलग करते हुए अल्लाह से जोड़ता है. मुसलमान आम तौर पर रमजान के आखिरी 10 दिनों में एतकाफ करते हैं.

हालांकि, अगर कोई मुसलमान किसी भी उद्देश्य के लिए रमजान के पहले या दूसरे अशरे के दौरान एतकाफ करने का फैसला करता है, तो कोई नुकसान नहीं. क्योंकि हमारे प्रिय पैगंबर मोहम्मद ने रमजान के आखिरी 10 दिनों में अक्सर एतकाफ किया, दुनिया भर में कई मुसलमान आखिरी अशरे में एतकाफ की तैयारी करते हैं. पुरुष मस्जिदों में खुद को अलग कर सक लेते हैं , जबकि महिलाएं अपने घरों में ऐसा कर सकती हैं.

ईद की तैयारियां और जकात-फितरा

रमजान के तीसरे अषरे में ही सामाजिक और पारिवारिक गतिविधियां भी बढ़ जाती हैं. ईद सही ढंग से परिवार और अन्य लोगों के साथ सौहार्दपूर्वक मनाई जाए, इसके लिए खरीदारी भी इसी दौरान की जाती है. आम तौर से लोग जकात-फितरा का वितरण भी आखिरी अशरे में करते हैं, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग भी ईद की खुशियां मनाने के लिए सही समय पर तैयारी कर से.

आखिरी अशरा रोजे का समय और तापमान

आखिरी आषरे में रोजे की अवधि बढ़ जाती है. यानी एक तरफ सेहरी का समय कम हो जाता है और इफ्तार का समय बढ़ जाता है. इस तरह रोजे की अवधि बढ़ जाती है. यही हाल तापमान का भी है. रमाजन जब षुरू हुआ तो तापमान कम था.तीसरा अषरा आते-आते तापमान भी बढ़ गया है. अब रोजेदार गर्मी की शिद्दत महसूस करने लगे हैं.

गांव-घर जाने की गहमागहमी

हर कोई चाहता है कि ईद अपने पूरे परिवार के साथ मनाई जाए. इसी मंषा से रमजान के आखिरी आषरा में रोजेदारों की ट्रैविंग भी बढ़ जाती है.परिवार वालों के साथ ईद मनाने के लिए काम धंधे के चक्कर घर सैकड़ों मील दूर रहने वाले इस दौरान सफर भी करते हैं. इस दौरान रेलवे में रिजर्वेशन न के बराबर मिलता है. ऐसे में लोग अलग-अलग साधन से परिवार के पास पहुंचने की तैयारी में रहते हैं.

कुल मिलाकर रमजान के सभी तीन अशरे महत्वपूर्ण हैं और मुसलमानों को इन 30 दिनों में सामान्य दिनों से अधिक रोजे और प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. चूंकि इस महीने के आखिरी दस दिनों में इस्लामी नजरिए से कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं और ईद की तैयारियों का बोझ बढ़ जाता है, इसलिए तीसरा अषरा बाकी दो अषरों से ज्यादा खास होता है.