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हैदर कौन है?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो विशेष

तेलंगाना प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान एक नाम बहुत चर्चा में रहा. यह नाम है हैदर अली का. चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक सीनियर लीडर ने वोट के ध्रुवीकरण के लिए एक जनसभा में यह उछाल दिया-कौन है हैदर अली ? इसके बाद तो तेलंगाना में सियासी बवंडर ही खड़ा हो गया. इसे सर्वाधिक गंभीरता से लिया एआईएमआईएम के सदर ओवैसी ने. उन्होंने इसके बाद की तमाम जनसभाओं में यह बताने की कोशिश की कि हैदर अली कौन हैं ?

हैदर अली की व्यक्तिगत जानकारियां

  • -पूरा नाम:      हैदर अली
  • -जन्म:  1721 ई
  • -जन्म भूमिः    बुदीकोट, मैसूर,
  • -मृत्यु तिथि    7 दिसंबर, 1782
  • -शासन 18 वीं शताब्दी के मध्य वीर योद्धा था. अपनी योग्यता और काबिलियत के बल पर मैसूर के शासक बने.
  • -युद्ध 1782 में कोलेरू नदी के तट पर हुए युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने 400 फ्रांसीसी सैनिकों के सहयोग से 100 ब्रिटिश और 1,800 भारतीय सैनिकों को पराजित किया.
  • -पद:  हैदर अली मैसूर सेना में ब्रिगेड कमांडर .
  • -अन्य जानकारी: हैदर अली को बड़ी कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा. हैदराबाद का निजाम, मराठा और अंग्रेज सभी उसके शत्रु थे. तीनों ने 1766 ई. में उसके विरुद्ध संधि कर ली.

हैदर का मतलब क्या होता है ?

आगे बढ़ाने से पहले यह जानना जरूरी है कि हैदर का मतलब क्या है ? बीजेपी नेता के हैदर पर बखेड़ा खड़ा करने पर ओवैसी ने हर जनसभा मंे लोगों को यह बताने का प्रयास किया कि हैदर का शब्दिक अर्थ क्या है ? रेख़्ता की वेबसाइट से इस बारे में जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, इस्लाम में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले हजरत अली को हैदर की उपाधि दी गई थी, जबकि हैदर का मतलब शेर, बाघ, सिंह, व्याघ्र वीर, शूर, बहादुर होता है. उर्दू में बहादुर व्यक्ति को हैदर कहा जाता है.

क्या हैदर सच्ची कहानी पर आधारित है ?

हैदर जिन्हें हैदर अली भी कहा जाता है, उनकी तरक्की और बहादुरी के किस्से सुनकर आम लोगों को यह यकीन ही नहीं होता कि देश में ऐसा भी कोई व्यक्ति गुजरा है. जब कि यह सोलह आने सच है. ऐसे लोगों को बता दूं कि हैदर अली (जन्म- 1721 ई, मृत्यु- 7 दिसम्बर, 1782 ई.) 18वीं शताब्दी के मध्य एक वीर योद्धा थे, जो अपनी योग्यता और काबिलियत के बल पर मैसूर के शासक बने. हैदर अली का जन्म 1722 में, बुदिकोटे, मैसूर, भारत में हुआ था. मैसूर के मुस्लिम शासक और सेनापति के रूप में हैदर अली ने 18 वीं शताब्दी के मध्य में दक्षिण भारत में हुए युद्धों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

हैदर अली बतौर मैसूर शासक

एक फ्रांसीसी व्यक्ति जोसेफ फ्रैक्वाय डूप्ले से युद्ध कौशल सीखने के बाद हैदर अली ने मैसूर सेना में ब्रिगेड कमांडर के पद पर नियुक्त अपने भाई को बंबई (वर्तमान मुम्बई) सरकार से सैनिक साजो-सामान हासिल करने और 30 यूरोपीय नागरिकों को बंदूकची बहाल करने के लिए प्रेरित किया. इस तरह पहली बार किसी भारतीय द्वारा बंदूकों और संगीनों से लैस नियंत्रित सिपाहियों की टुकड़ी का गठन हुआ. इसके पीछे ऐसे तोपखाने की शक्ति थी, जिसके तोपची यूरोपीय थे. हैदर अली ने 1749 में मैसूर में स्वतंत्र कमान प्राप्त की. बाद में उसने प्रधानमंत्री नागराज की जगह ले ली.र राजा को उसके ही महल में नजरबंद कर दिया. फिर लगभग 1761 में वह मैसूर के शासक बन गए. उन्होंने बहुत जल्दी ही बदनौर, कनारा तथा दक्षिण भारत की छोटी-छोटी रियासतों को जीतकर अपने राज्य में शामिल कर लिया.

हैदर अली योग्य सेनापति एवं सहिष्णु व्यक्ति

यद्यपि हैदर अली अनपढ़ थे. फिर भी बहुत कुशल शासक और योग्य सेनापति साबित हुए. वह रियासत के सारे काम अपने सामने बहुत द्रुत गति से निबटाते थे. सभी लोग बड़ी आसानी से उनसे भेंट कर सकते थे. उस जमाने के मुस्लिम शासकों में हैदर अली सबसे सहिष्णु शासक माने जाते थे.

हैदर को किस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा

हैदर अली को बड़ी कठिन स्थिति का सामना करना पड़ा. एक जमाने में हैदराबाद के निजाम, मराठे और अंग्रेज सभी उनके शत्रु हो गए. इन तीनों ने 1766 ई. में उनके विरुद्ध संधि की, पर हैदर अली कठिनाइयों से घबराने वालों में से नहीं थे. उन्होंने जल्दी ही मराठों को अपनी ओर मिला लिया. फिर अंग्रेजों और निजाम से जमकर लोहा लिया. उसने मंगलौर पर पुनः अधिकार कर लिया. बम्बई (वर्तमान मुम्बई) स्थित अंग्रेजी सेना को पराजित किया. 1768 ई. में वह मद्रास के पांच मील निकट तक पहुंच गए. अंग्रेजों को अपने अनुकूल संधि करने पर बाध्य किया. इस सन्धि के अनुसार अंग्रेजों ने हैदर अली के विजित प्रदेशों पर उसके आधिपत्य को स्वीकार कर लिया.र यह वादा किया कि जब कभी भी मैसूर पर हमला होगा, अंग्रेज हैदर अली की मदद करेंगे. इस प्रकार अंग्रेजों पर पहली विजय प्राप्त करने से हैदर अली की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई.

हैदर के साथ अंग्रेजों की दगाबाजी

1771 ई. में मराठों ने मैसूर राज्य पर हमला बोल दिया. अंग्रेजों ने अपना वादा पूरा नहीं किया. हैदर अली की कोई सहायता नहीं की. इससे क्षुब्ध होकर 1779 में हैदर ने भाड़े के फ्रांसीसी और यूरोपीय सैनिकों की मदद से अपनी सेना सशक्त की. अंग्रेजों के खिलाफ निजाम व मराठों से समझौता किया. अंग्रेजों ने हैदर अली के इलाके में फ्रांसीसी उपनिवेश पर अधिकार कर लिया. इसने हैदर की नाराजगी बढ़ा दी. 1780 में उन्हांेने दक्षिण भारत के क्षेत्र, कर्नाटक में, युद्ध करके अंग्रेजों की 2,800 सैनिकों की टुकड़ी को तहस-नहस कर दिया. अर्काट पर कब्जा कर लिया. इसके बाद, निजाम और मराठों से हैदर अली का संबंध विच्छेद कराने में अंग्रेज सफल रहे. 1781 में पोर्टो नोवो, पोल्ली लूर और शॉलिंगुर के युद्धों में उन्होंने हैदर अली को लगातार तीन बार पराजित किया. पोर्टो नोवो में हैदर अली के 10,000 से अधिक सैनिक मारे गए.

हैदर अली टीपू सुल्तान के कौन हैं ?

हैदर अली टीपू सुल्तान के पिता हैं. टीपू सुल्तान ने जंगों में अपने पिता का बहादुरी से साथ दिया.20 नवंबर 1750 में कर्नाटक के देवनाहल्ली में जन्मे टीपू का पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था. उनके पिता हैदर अली के अलावा मां का नाम फकरु निशा था. टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के एक सैनिक.
1782 में कोलेरू नदी के तट पर हुए युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने 400 फ्रांसीसी सैनिकों के सहयोग से 100 ब्रिटिश और 1,800 भारतीय सैनिकों को पराजित कर दिया. उसी वर्ष अप्रैल में जब अंग्रेज हैदर अली और टीपू सुल्तान को मैदान में स्थित उनके प्रमुख शस्त्रागार अरनी के कबिले से खदेड़ने का प्रयास कर रहे थे, पोर्टो नोवो में 1,200 फ्रांसीसी सैनिक उतरे और कड्डालोर पर कब्जा कर लिया. जॉर्ज मैकार्टनी द्वारा मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के गवर्नर का पद संभालने के बाद ब्रिटिश नौसेना ने नागपट्टिनम पर अधिकार कर लिया और हैदर अली को यकीन दिला दिया कि वह अंग्रेजों को नहीं रोक सकते.

देहांत

हैदर अली को उसके देशवासियों ने सहायता नहीं दी. फिर उन्होंने अकेले ही अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया. हैदर अली कैंसर रोग से पीड़ित थे. जब युद्ध चल रहा था, तभी 7 दिसंबर, 1782 ई. में उनका देहांत हो गया. मृत्यु के समय हैदर ने टीपू सुल्तान से अंग्रेजों के साथ शांति बनाए रखने की मनुहार की थी. हैदर अली का शासनकाल उनकी मृत्यु तक चला. उनका क्षेत्र पर पर्याप्त नियंत्रण और प्रभाव था. हैदर अली ने दक्षिणी भारत के राजनीतिक माहौल को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया. अंग्रेजों के खिलाफ उनकी सैन्य लड़ाई आवश्यक थी.

पिता के बाद टीपू सुल्तान बने शासक

18वीं सदी के अंत में, हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान, जो अपनी सैन्य ताकत और रचनात्मक रणनीतियों के लिए प्रसिद्ध थे, ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को उसकी कुछ सबसे कठिन लड़ाइयां सौंपीं. इस दौरान मैसूर और अंग्रेजों के बीच लड़े गए युद्धों का भारत की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर क्या प्रभाव पड़ा, इसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में व्यापक जांच की गई है.

टीपू सुल्तान के पुत्र का नाम क्या था?

टीपू सुल्तान के बाद उनके पुत्रों ने रियासत संभाली. टीपू सुल्तान का पैतृक परिवार मुहम्मद के वंशज होने का दावा करता है, इसलिए उनके नाम में सैय्यद और वाल शरीफ लगाया जाता है.टीपू की कई पत्नियां थीं. उनमें से एक, सिंध साहिबा , अपनी सुंदरता और बुद्धिमत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध थीं . जिनके पोते साहिब सिंध सुल्तान थे. उन्हें महामहिम शहजादा सैय्यद वाला शरीफ अहमद हलीम-अज-जमान खान सुल्तान साहिब के नाम से भी जाना जाता है. टीपू के परिवार को अंग्रेजों ने कलकत्ता भेज दिया था. इनके कई वंशज अब भी कोलकाता में रहते हैं. उन्होंने वोटों के ध्रुवीकरण के लिए राजनीतिक दलों द्वारा टीपू सुल्तान के नाम के इस्तेमाल पर आपत्ति व्यक्त की है.

टीपू सुल्तान के कई बेटे थे. टीपू सुल्तान के बड़े बेटे का नाम शहजादा सैय्यद शरीफ हैदर अली खान सुल्तान (1771 – 30 जुलाई 1815) था. उसके बाद टीपू सुल्तान के बेटे हुए शहजादा सैय्यद वालशरीफ अब्दुल खालिक खान सुल्तान (1782 – 12 सितंबर 1806),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुही-उद-दीन अली खान सुल्तान (1782 – 30 सितंबर 1811),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुइज-उद-दीन अली खान सुल्तान (1783 – 30 मार्च 1818),शहजादा सैय्यद वाला शरीफ मिराज-उद-दीन अली खान सुल्तान (1784),शहजादा सैय्यद वाला शरीफ मुइन-उद-दीन अली खान सुल्तान (1784),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुहम्मद यासीन खान सुल्तान (1784 – 15 मार्च 1849),शहजादा सैय्यद वाला शरीफ मुहम्मद सुभान खान सुल्तान (1785 – 27 सितंबर 1845),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुहम्मद शुक्रुल्लाह खान सुल्तान (1785 – 25 सितंबर 1830),शहजादा सैय्यद वालशरीफ सरवर-उद-दीन खान सुल्तान (1790 – 20 अक्टूबर 1833),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुहम्मद निजाम-उद-दीन खान सुल्तान (1791 – 20 अक्टूबर 1791),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुहम्मद जमाल-उद-दीन खान सुल्तान (1795 – 13 नवंबर 1842),शहजादा सैय्यद वालशरीफ मुनीर-उद-दीन खान सुल्तान (1795 – 1 दिसंबर 1837),शहजादा सर सैय्यद वालशरीफ गुलाम मुहम्मद सुल्तान साहब (मार्च 1795 – 11 अगस्त 1872),शहजादा सैय्यद वालशरीफ गुलाम अहमद खान सुल्तान (1796 – 11 अप्रैल 1824),शहजादा सैय्यद वालशरीफ हशमथ अली खान सुल्तान (जन्म के समय ही मृत्यु हो गई).

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