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कांस्टीट्यूशन क्लब में बोले फारूक अब्दुल्लाह, हमें डर की दुनिया से निकलने की जरूरत

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

देश का संविधान बहुत मजबूत और स्थिर है, जिसे संविधान निर्माताओं ने बहुत मेहनत और पसीने से बनाया है, इसलिए संसद को इसे बदलने की कोई शक्ति नहीं है, हमें डर के मनोविज्ञान से बाहर निकलना चाहिए और एक राष्ट्र के रूप में, खुद को राजनीतिक, शिक्षा और बौद्धिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है, इसलिए वोट लोकतंत्र में किसी के अधिकारों को पुनः प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है, सभी को मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए और मतदान के अधिकार का प्रयोग करना चाहिए. समय आने पर इसका उपयोग करना चाहिए ताकि वे अपनी पसंद का एक ऐसा जन प्रतिनिधि चुन सकें जो इस देश के लिए उपयोगी हो और जो धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में विश्वास रखता हो. ये बातें जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में इंडियन मुस्लिम फॉर सिविल राइट्स के बैनर तले ‘लोकतंत्र को बचाओ-देश को बचाओ विषय पर बोलते हुए कहीं.

संविधान को कुचलने से बचाएं

वहीं, सांसद डॉ. एसटी हसन ने अपने बयान में कहा कि पूरे देश में फिरकापरस्त ताकतों द्वारा ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिसमें संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, न्यायपालिका और विधायिका पर कुठाराघात हो रहा है. दुरूपयोग किया जा रहा है और खासकर अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों को छीना जा रहा है, ऐसे समय में देश की संस्थाओं, सामाजिक संगठनों और देश के धर्मनिरपेक्ष नागरिकों की जिम्मेदारी है कि वे संविधान को कुचलने से बचाएं.

एक भी संप्रदाय परेशान हुआ तो यह देश कभी विकसित नहीं हो सकता

अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली ने कहा कि आज देश के एक खास वर्ग को मान्यता से परेशान किया जा रहा है और देश को पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र बनाने का माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन याद रखें कि अलग-अलग धर्म और सभ्यता के लोग हजारों साल से इस देश में रह रहे हैं. अगर एक भी संप्रदाय परेशान हुआ तो यह देश कभी विकसित नहीं हो सकता.

हम संविधान की नींव को मजबूत करें

सांसद अब्दुल खालिक ने कहा कि बीमारी है तो शरीर कमजोर है. सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग इसी तरह होता है. जब कानून का उल्लंघन होता है, तो देश का सबसे कमजोर वर्ग विशेषकर अल्पसंख्यक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होता है, इसलिए हमें खुद को आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है ताकि हमारे लिए जरूरी है कि हम संविधान की नींव को मजबूत करें और अपनी राजनीतिक चेतना का उपयोग करें.

लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें

पद्मश्री प्रो. सैयदा सैयदेन हमीद ने देश की मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ माहौल बन रहा है, ऐसे में जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि इसे ताकत के साथ रोकने का प्रयास करें. और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें, आज देश के शासकों द्वारा कमजोर वर्गों के साथ अन्याय किया जा रहा है, इसलिए अन्याय को खत्म करने और न्याय हासिल करने के लिए हम सभी को एक साथ खड़े होने की जरूरत है.

उन्होंने यह भी कहा कि आज एक अच्छे राष्ट्र के तौर पर हमारी जिम्मेदारी है कि हम पूरे देश को संविधान की मजबूती पर ध्यान दें, अगर संविधान मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा, अगर संविधान कमजोर होगा तो देश मजबूत होगा, कमजोर होगा.

2024 देश के लिए अहम

इससे पहले कार्यक्रम के संयोजक पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा
कि इस साल देशभर में आम चुनाव होने वाले हैं, 18वीं लोकसभा के लिए ये चुनाव भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व की लड़ाई कही जा सकती है, साल 2024 देश के लिए बेहद अहम है जहां 140 करोड़ नागरिकों की किस्मत का फैसला बहुत प्रभावित होंगे. हम चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, हमारा लोकतंत्र, हमारी स्वतंत्रता, हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्य, हमारी सामाजिक एकता, हमारा संविधान और संवैधानिक संस्थाएं, हमारी न्यायिक प्रणाली, अल्पसंख्यकों की गरिमा और अन्य हाशिए पर रहने वाले वर्ग हमारे देश की सांप्रदायिक बयानबाजी, देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ संगठित नफरत अभियान, दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के खिलाफ अत्याचार, हिंदुस्तान का खुला निमंत्रण भारत की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लिए एक गंभीर चुनौती है.

उन्होंने आगे कहा कि इस समय हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम गंभीरता से अपने संविधान में निहित मूल्यों, यानी न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को बहाल करने का रास्ता खोजें.

प्रोफेसर रतन लाल ने अपने संबोधन में सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग को आश्वासन दिया कि ये आज की चिंताजनक स्थिति में हैं, ये जल्द ही खत्म हो जाएंगी, जरूरी है कि धैर्य रखें और किसी भी तरह की भावनाओं में न बहें.