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जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् का तीन दिवसीय अधिवेशन: कहा, मुसलमानों ने चुनाव में रखा संयम और बुद्धिमत्ता

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् का मानना है कि मुसलमानों ने चुनावों में समग्र रूप से बुद्धिमत्ता, सूझ-बूझ, अंतर्दृष्टि और धैर्य दिखाया. चुनावों के दौरान उन्हें गुमराह करने, भड़काने और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने की योजनाबद्ध और लगातार कोशिशें हुईं, लेकिन उन्होंने खुद को इस जाल से बचाए रखा. बड़ी शालीनता और सतर्कता के साथ अपने वोट का इस्तेमाल किया.

इस बार संसदीय चुनाव में लोगों का जनादेश बिल्कुल स्पष्ट है. यह जनादेश तानाशाही के बजाये लोकतंत्र, फासीवाद और संप्रदायवाद के बजाये संवैधानिक मूल्यों, नफरत और भेदभाव के बजाये सहिष्णुता और बहुलवाद और अहंकार के बजाय विनम्रता के पक्ष में है.

सलाहकार परिषद् को एहसास है कि लोगों ने सत्ताधारी पार्टी को सत्ता नहीं लौटाई है, बल्कि एनडीए की गठबंधन सरकार और एक मजबूत विपक्ष के लिए वोट किया है. हकूमत के ज़िम्मेएदारों को इस जनादेश को भली-भांति समझना चाहिए और उसके अनुरूप अपने दृष्टिकोण में उचित सुधार करना चाहिए.

परिषद् का यह भी एहसास है कि जहां भाजपा को अपनी सांप्रदायिक नीतियों के कारण देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में नुकसान उठाना पड़ा है, वहीं दक्षिण में उसकी पकड़ मजबूत हुई है.दक्षिणी राज्यों के लोगों की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे अपने राज्यों में सांप्रदायिकता, नफरत और कट्टरता के जहर को फैलने न दें, जिसने देश के बाकी हिस्सों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है.

देश का एक बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश, जहां पिछले कई वर्षों से धार्मिक नफरत के आधार पर मुसलमानों के खिलाफ ज़ुल्म और हिंसा का माहौल बनाया जा रहा था, मस्जिद मंदिर के नाम पर दो वर्गों के बीच दरार पैदा की जा रही थी, और कानून के शासन के बजाय, अत्याचार , उत्पीड़न और कट्टरता और कानून के पक्षपातपूर्ण उपयोग का एक सामान्य माहौल बनाया गया था वहां राज्य के लोगों ने अपने वोटों के माध्यम से इस बुरी प्रवृत्ति के प्रति अपनी अस्वीकृति स्पष्ट रूप से व्यक्त की है.

केंद्रीय सलाहकार परिषद् विपक्षी दलों से मांग करती है कि वे नतीजों और उसके जनादेश को समझें . यदि धर्मनिरपेक्ष दल अपने दलगत हितों एवं व्यक्तिगत अहंकार से ऊपर उठकर गठबंधन का रूप नहीं लेते तो उन्हें यह सफलता कभी नहीं मिलती. यह भी एक तथ्य है कि विपक्ष पर लोगों का विश्वास तब पैदा हुआ जब उसने सांप्रदायिकता, फासीवादी प्रवृत्तियों और नफरत और भेदभाव की राजनीति के खिलाफ स्पष्ट और साहसिक रुख अपनाया. जिन राज्यों में वे साम्प्रदायिकता के विरुद्ध स्पष्ट रुख लेकर आये, वहां उन्हें सफलता मिली . जहां वे संकोच, भय और दमन तथा लोभ और स्वार्थ के मनोविज्ञान से पीड़ित थे, वहां उन्हें इस बार भी असफलता का सामना करना पड़ा.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की केंद्रीय सलाहकार परिषद् हालिया चुनावों में नागरिक समाज के असाधारण प्रयासों की सराहना करती है, जिन्होंने खामोशी और समझदारी से लोकतंत्र की स्थिरता और देश में सांप्रदायिक शांति और सद्भाव के स्थायित्व और दमनकारी नीतियों की रोकथाम के लिए सतत एवं समग्र संघर्ष किया तथा जनचेतना को जागृत किया.

इसी प्रकार दलित और पिछड़े वर्ग के नागरिकों ने भी जनता की मूलभूत समस्याओं और संविधान की रक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी प्राथमिकताएं तय कीं . सकारात्मक परिणाम सामने आये.

यह बैठक इसके लिए उनकी सराहना करते हैं और देश की मौजूदा स्थिति में भविष्य में भी इसी तरह का समझदारी भरा व्यवहार जारी रखने की अपील करती है.’ इसी प्रकार मुसलमानों की धार्मिक एवं सामुदायिक संगठनों, सामाजिक संस्थाओं, बुद्धिजीवियों, युवाओं एवं अन्य व्यक्तियों के संगठित एवं सक्रिय प्रयासों को भी प्रशंसा की दृष्टि से देखती है और उन सभी के लिए प्रार्थना करती है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद से सम्बंधित लोगों ने भी अपनी दीर्घकालिक नीति और परंपराओं के अनुसार देश के सभी वर्गों के लिए न्याय प्राप्त करने, शांति और व्यवस्था स्थापित करने और दंगा व फसाद को खत्म करने के लिए निरंतर और सर्वांगीण प्रयास किए हैं.

हम अपने जनों और सहयोगियों के प्रयासों की भी गहराई से सराहना करते हैं और इन प्रयासों को जारी रखने की अपील करते हैं.

सलाहकार परिषद् का यह अधिवेशन केंद्र सरकार और विपक्ष दोनों से मांग करता है कि वे लोगों के इस जनादेश का सम्मान करें, लोगों के बुनियादी सवालों और समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान दें और लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपराओं को ध्यान में रखें। अधिवेशन याद दिलाता है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह देश के सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का समान रूप से सम्मान करे और देश में सांप्रदायिकता और वर्ग संघर्ष पैदा न होने दे। जब कोई पार्टी या गठबंधन सरकार बना लेता है तो वह देश के सभी लोगों के संसाधनों का ट्रस्टी बन जाता है और सभी के लिए जिम्मेदार होता है. वे दोनों जिन्होंने उन्हें वोट दिया और वे जो उनसे असहमत थे. इसलिए सरकार को देश के नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए.

सलाहकार परिषद् समझती है कि एनडीए में शामिल धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। यदि वे सरकार का समर्थन कर रहे हैं, तो अपने सिद्धांतों के कारण यह सुनिश्चित करना उनकी ज़िम्मेदारी है कि सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों और परंपराओं का सख्ती से पालन करे, लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वायत्तता और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता में विघ्न उत्पन्न करने से बचे और देश के हर वर्ग की समस्याओं को गंभीरता से हल करें। क्रोनी पूंजीवाद और पक्षपाती संप्रदायवाद की नीतियों को त्यागें और संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करने वाली नीतियों को बढ़ावा दें। समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाया जाए और अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के अधिकारों का पूरा सम्मान करते हुए उनके विश्वास को बहाल किया जा सके.

महत्वपूर्ण बिंदु:

मुसलमानों की सूझ-बूझ:

चुनावों में मुसलमानों ने बुद्धिमत्ता, सूझ-बूझ और धैर्य दिखाया.
भड़काने और गुमराह करने की कोशिशों के बावजूद संयम बनाए रखा.

जनादेश का महत्व:

जनादेश लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों और सहिष्णुता के पक्ष में.
सत्ताधारी पार्टी को सत्ता नहीं लौटाई गई, बल्कि मजबूत विपक्ष का समर्थन.

भाजपा की नीतियों पर प्रतिक्रिया:

उत्तर और पश्चिम में भाजपा को नुकसान, दक्षिण में पकड़ मजबूत.
उत्तर प्रदेश में धार्मिक नफरत के खिलाफ जनता की अस्वीकृति.

विपक्ष की भूमिका:

विपक्षी दलों को गठबंधन और सांप्रदायिकता के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाने की आवश्यकता.
धर्मनिरपेक्ष दलों की जिम्मेदारी बढ़ी.

नागरिक समाज और दलितों की भूमिका:

नागरिक समाज के प्रयासों की सराहना.
दलितों और पिछड़े वर्गों ने संविधान और मूलभूत समस्याओं पर ध्यान दिया
.

केंद्र सरकार से अपील:

सरकार से सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का समान रूप से सम्मान करने की मांग.
सांप्रदायिकता और वर्ग संघर्ष पैदा न करने की अपील.

एनडीए की जिम्मेदारी:

एनडीए के धर्मनिरपेक्ष दलों को लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन सुनिश्चित करना.
कमजोर और पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने की आवश्यकता.

भविष्य की दिशा:

अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के अधिकारों का सम्मान.
क्रोनी पूंजीवाद और पक्षपाती संप्रदायवाद की नीतियों का त्याग.

परिषद की सराहना:

मुसलमानों, सामुदायिक संगठनों और बुद्धिजीवियों के प्रयासों की सराहना.
देश की मौजूदा स्थिति में समझदारी भरे व्यवहार की अपील.

सर्वांगीण प्रयास:

न्याय, शांति और व्यवस्था स्थापित करने के निरंतर प्रयास.
दंगा और फसाद को खत्म करने के प्रयासों की सराहना.