जहान-ए-खुसरो: 25 वर्षों से सूफी संगीत की अनमोल विरासत का जश्न
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सूफी संगीत की उत्कृष्ट परंपरा को समर्पित महोत्सव ‘जहान-ए-खुसरो’ ने इस साल अपनी रजत जयंती (25वीं वर्षगांठ) मनाई। इस तीन दिवसीय आयोजन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के सुंदर नर्सरी में किया। इस अवसर पर उन्होंने सूफी परंपरा की विशिष्टता, अमीर खुसरो की विरासत और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक जड़ों को रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “‘जहान-ए-खुसरो’ की खुशबू हिंदुस्तान की मिट्टी की खुशबू है। हजरत अमीर खुसरो ने भारत को जन्नत का वह बागीचा बताया था, जहां तहज़ीब के हर रंग फले-फूले हैं।”

जहान-ए-खुसरो: सूफी संगीत का सबसे प्रतिष्ठित मंच
‘जहान-ए-खुसरो’ सूफी संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित मंच है, जिसे वर्ष 2001 में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और कलाकार मुजफ्फर अली द्वारा शुरू किया गया था। यह महोत्सव रूमी फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित किया जाता है, जिसकी स्थापना दिसंबर 2004 में एक राष्ट्रीय निकाय के रूप में हुई थी।
रूमी फाउंडेशन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मानव जाति की एकता और सीमाओं से परे एक दुनिया बनाने की परिकल्पना को साकार करना है। इस महोत्सव का नाम अमीर खुसरो की सूफी विरासत के सम्मान में रखा गया है, जो भारतीय संगीत और गंगा-जमुनी तहज़ीब के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक थे।
मुजफ्फर अली, जो खुद एक फिल्म निर्माता, कवि, कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ने इस महोत्सव को एक सिनेमाई अनुभव के रूप में डिजाइन किया, जहां सूफी संगीत के माध्यम से प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता का संदेश दिया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय महोत्सव
पिछले 25 वर्षों में, ‘जहान-ए-खुसरो’ ने न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपार लोकप्रियता हासिल की है। यह महोत्सव अब तक दिल्ली, जयपुर, पटना, लखनऊ, श्रीनगर, बोस्टन और लंदन में भी प्रस्तुत किया जा चुका है।
इसमें अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इटली, मोरक्को, सूडान, मिस्र, ट्यूनीशिया, ईरान, तुर्की, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई देशों के संगीतकार भाग लेते हैं। यह महोत्सव सूफी संगीत की अलग-अलग शैलियों और परंपराओं को एक मंच पर प्रस्तुत करता है।

प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन: सूफी संगीत और भारतीय संस्कृति का संगम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महोत्सव को भारतीय संस्कृति और कला के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा,
“सूफी संगीत भारत की साझी विरासत का प्रतीक है। जब यह परंपरा भारत आई, तो उसे अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस हुआ।”
उन्होंने आगे कहा कि सूफी संतों ने खुद को केवल मस्जिदों और खानकाहों तक सीमित नहीं रखा। वेदों की ऋचाओं से लेकर कुरान की आयतों तक, हर चीज़ को आत्मसात किया और संगीत को अपनी आध्यात्मिक यात्रा का माध्यम बनाया।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर रमज़ान की शुभकामनाएं भी दीं और कहा कि आगा खान का सुंदर नर्सरी के संरक्षण और सौंदर्यीकरण में दिया गया योगदान कला प्रेमियों के लिए एक आशीर्वाद है।
टीईएच बाजार: हस्तशिल्प और कला का प्रदर्शन
इस वर्ष के ‘जहान-ए-खुसरो’ महोत्सव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने टीईएच बाजार (The Exploration of the Handmade) का भी दौरा किया।
यह बाजार ‘एक जिला, एक उत्पाद’ पहल के तहत आयोजित किया गया था, जहां देशभर के हस्तशिल्प, हथकरघा और कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। यहां प्रदर्शित लघु फिल्मों के माध्यम से भारत की समृद्ध कारीगरी और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाया गया।

जहान-ए-खुसरो की 25वीं वर्षगांठ: एक नई ऊंचाई
इस महोत्सव के 25 वर्षों के सफर को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह केवल एक संगीत समारोह नहीं, बल्कि संस्कृति और विरासत के उत्सव का प्रतीक बन गया है।
रूमी फाउंडेशन के संस्थापक मुजफ्फर अली का कहना है,
“जहान-ए-खुसरो का उद्देश्य सूफी संगीत को केवल एक कलात्मक माध्यम के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में स्थापित करना है।”
इस आयोजन के दौरान, अमीर खुसरो के कलाम और रचनाओं को सूफी गायकों और कलाकारों ने प्रस्तुत किया, जिसने इस महोत्सव को एक अद्वितीय संगीतमय अनुभव बना दिया।
काबिल ए गौर
‘जहान-ए-खुसरो’ न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर सूफी संगीत प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। यह महोत्सव अमीर खुसरो की सूफी विरासत, भारतीय संस्कृति और गंगा-जमुनी तहज़ीब का सबसे बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है।
25 वर्षों की यह यात्रा भारतीय कला, संगीत और आध्यात्मिकता का उत्सव रही है, और आने वाले वर्षों में यह अपनी महानता और प्रभाव को और आगे बढ़ाएगा।