भाजपा के ‘पसमांदा मुसलमान‘ के सियासी खेल पर बसपा सांसद दानिश अली का कड़ा प्रहार, बोले-मुसलमानों को विधायक, सांसद बनने नहीं देना चाहती
मुस्लिम नाउ ब्यूरो ,नई दिल्ली
‘पसमांदा मुस्लिम’ के नाम पर मुसमलानों में फूट डालने का उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू किया गया भारतीय जनता पार्टी का सियासी खेल, इससे पहले की जोर पकड़े, हमले शुरू हो गए हैं. दो दिन पहले जहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भाजपा के खेल में भुस भरने के लिए बिना इसका नाम लिए पिछड़े मुसलमानों को लेकर विस्तृत कार्य योजना पर जहां अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पास किया. वहीं बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने
यह कहकर भाजपा पर हमला किया है कि वह मुसलमानों को संासद और विधायक बनता नहीं देखना चाहती.
रविवार को एक कार्यक्रम में बोले हुए दानिश अली ने पसमांदा मुसलमानों तक बीजेपी की पहुंच को तमाशाश् करार देते हुए आरोप लगाया कि सत्ताधारी पार्टी पूरे देश में मुस्लिम मुक्त सदन चाहती है.
उल्लेखनीय है कि यूपी चुनाव के समय जहां भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों का राग छेड़कर सियासी लाभ लेने की कोशिश की थीं, वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस राग को अलापते दिख रहे हैं. चूंकि डेढ साल बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए माना जा रहा है कि इस सियासी तिकड़म के पीछे वोटों का गुणा, भाग है. वैसे भाजपा पसमांदा मुसलमानों की कितनी हितैशी है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हाल में संपन्न हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के समय इसने ऐसे किसी मुसलमान के नाम पर चर्चा करना भी जरूरी नहीं समझा जो पसमांदा मुसलमानां के वर्ग से आते हैं. भाजपा ऐसी पार्टी है, जिसके कहने को तो अल्पसंख्यक विभाग भी हैं, पर चुनावों में मुसलमानों को टिकट देना जरूरी नहीं समझा जाता.
बहरहाल, दानिश अली ने भाजपा पर बहुमत का तुष्टिकरण करने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित तौर पर झूठे मामले दर्ज करवाकर और बुलडोजर का उपयोग करके उनके घरों को ध्वस्त करने का आरोप लगाया.
उत्तर प्रदेश के अमरोहा के सांसद ने कहा कि मुस्लिमों के मुद्दों को उठाने के लिए विपक्षी दलों, विशेषकर उन लोगों की नैतिक जिम्मेदारी है, जिन्हें अल्पसंख्यक समुदाय ने वोट दिया था, लेकिन तर्क दिया जाता है कि बहुसंख्यक राजनीति के इस युग में, मुसलमानों के मुद्दे को पृथक रखना ही बेहतर है.
उन्होंने कहा,राजनीतिक विश्लेषकों ने सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को आश्वस्त किया है कि अल्पसंख्यक मुद्दों को संबोधित करना और जोरदार तरीके से उठाना बहुसंख्यक समुदाय के वोट प्राप्त करने के लिए प्रतिकूल है. इसलिए हर राजनीतिक दल मुसलमानों के मुद्दे उठाने से कतरा रहा है.
अली ने कहा कि भाजपा ने इतनी नफरत पैदा की है कि वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटक जाता है.बहुजन समाज पार्टी के सांसद ने आरोप लगाया, इस सरकार की नीतियां बहुसंख्यक तुष्टिकरण की हैं. वे नफरत के तुष्टीकरण के उद्देश्य से नीतियां हैं. वे तुष्टीकरण की बात करते हैं, लेकिन वास्तव में यह भाजपा सरकार है जो बहुमत का तुष्टिकरण कर रही है. ”
अली ने अॉल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के मामले का एक स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा कि भाजपा तुष्टिकरण पर जोर देती रहती है, लेकिन असली तुष्टीकरण यह दिखा रहा है कि कैसे तथ्य जांचकर्ताओं को जेल में डाल दिया जाता है और नफरत फैलाने वालों को सुरक्षा प्रदान की जाती है.
अली ने कहा कि भाजपा का यह तर्क कि अतीत में मुस्लिम तुष्टीकरण हुआ था, सच्चर समिति की रिपोर्ट से ध्वस्त हो गया है.उन्होंने कहा कि अगर मुसलमानों का तुष्टिकरण होता तो अब उनकी यह स्थिति नहीं होती.
श्रीलंका में क्या हो रहा है? वहां भी बहुसंख्यक तुष्टीकरण हो रहा था. यहां भी ऐसा ही हो रहा है. श्रीलंका में फोकस आर्थिक मुद्दों पर नहीं था, फोकस कृषि क्षेत्र पर नहीं था.उन्होंने कहा, आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है, हम हर क्षेत्र में नीचे जा रहे हैं. सरकार ध्रुवीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह जीवित रहने का सबसे अच्छा तरीका है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सुझाव के बारे में पूछे जाने पर कि पार्टी कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुसलमानों जैसे अल्पसंख्यकों के दबे-कुचले वर्गों तक पहुंचना चाहिए, अली ने कहा, यह एक तमाशा है. क्या किसी ने उन्हें उत्तर प्रदेश चुनाव में मुसलमानों को मैदान में उतारने से रोका था?
उन्होंने कहा, बीजेपी ने कहा कि वे कांग्रेस मुक्त भारत चाहते हैं, लेकिन उनका असली इरादा विपक्ष मुक्त भारत है, उनका असली इरादा मुस्लिम मुक्त विधायिका, राज्यों और संसद में है, और यही वह जगह है जहां वे आगे बढ़ रहे है.उन्होंने कहा कि वे पहले ही मुस्लिम-मुक्त भाजपा संसदीय दल हासिल कर चुके हैं.
अली ने आरोप लगाया कि भाजपा मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से वंचित करना चाहती है और वे सफल हो रहे हैं.अली की टिप्पणी भाजपा की अल्पसंख्यक शाखा द्वारा समुदाय के सबसे पिछड़े पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के लिए एक खाका तैयार करने के मद्देनजर आई है.
संसद के मानसून सत्र के पहले सप्ताह के लगभग “वाशआउट” के बारे में पूछे जाने पर, अली ने कहा कि विपक्ष को भी इस पर अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा.मेरा मानना है कि पिछले कुछ सत्रों से मैं जो देख रहा हूं वह यह है कि महत्वपूर्ण प्रश्न हमेशा सत्र के पहले सप्ताह में आते हैं. उदाहरण के लिए, एमएसपी पर मेरा सवाल मंगलवार को था, सदन में व्यवधान आया था और मैं वह सवाल नहीं पूछ सका.
अली ने दावा किया कि सरकार चाहती है कि सत्र का शुरुआती चरण धुल जाए क्योंकि जिन महत्वपूर्ण सवालों पर सरकार को घेरा जा सकता है वे पहले सप्ताह में हैं.इसलिए विपक्ष को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी.