Jamia Millia Islamia: कुरान पांडुलिपि प्रदर्शनी, नौरोज उत्सव का भव्य आयोजन
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) में दो महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। पहला, डॉ. जाकिर हुसैन लाइब्रेरी में दुर्लभ कुरान पांडुलिपियों की प्रदर्शनी और दूसरा, फारसी विभाग द्वारा आयोजित नौरोज उत्सव। दोनों आयोजनों में छात्रों, शिक्षकों और गणमान्य व्यक्तियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
डॉ. जाकिर हुसैन लाइब्रेरी में दुर्लभ कुरान पांडुलिपियों की प्रदर्शनी
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रतिष्ठित लाइब्रेरी में पवित्र कुरान की दुर्लभ पांडुलिपियों की एक सप्ताह तक चलने वाली प्रदर्शनी का उद्घाटन कुलपति प्रो. मजहर आसिफ ने किया। इस प्रदर्शनी में 15वीं से 20वीं शताब्दी तक की लगभग 35 दुर्लभ और वैज्ञानिक रूप से संरक्षित पांडुलिपियों को प्रदर्शित किया गया। इनमें विभिन्न सुलेख शैलियों और उत्कृष्ट कलात्मक डिजाइनों का समावेश था।

इस प्रदर्शनी की एक प्रमुख विशेषता कुरान के अनुवादों का व्यापक संग्रह था। इसमें हिंदी, उर्दू, तमिल, बंगाली, मलयालम, कन्नड़ सहित 11 भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी, जापानी, चीनी, जर्मन, फ्रेंच, रूसी, स्पेनिश, तुर्की, अल्बानियाई और फारसी जैसी विदेशी भाषाओं में अनुवाद शामिल थे। इसके अलावा, दृष्टिबाधित लोगों के लिए ब्रेल लिपि में कुरान भी प्रदर्शित की गई।
कार्यक्रम में प्रमुख हस्तियों में कुलपति प्रो. मजहर आसिफ, रजिस्ट्रार प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी, छात्र कल्याण के डीन प्रो. नीलोफर अफजल और लाइब्रेरी के यूनिवर्सिटी लाइब्रेरियन डॉ. विकास एस. नागराले मौजूद रहे। प्रो. आसिफ ने अपने संबोधन में कुरान के सार्वभौमिक संदेश और इसकी शिक्षाओं के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शनी न केवल इस्लामिक इतिहास और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि एक शैक्षणिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
डॉ. नागराले ने इस पहल को रमज़ान के दौरान आयोजित किए जाने के महत्व पर प्रकाश डाला और इसे एक आध्यात्मिक चिंतन का अवसर बताया। उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी में कुल 2,243 पांडुलिपियों का संग्रह है, जो इसे इस्लामी अध्ययन के लिए एक समृद्ध संसाधन बनाता है।

फारसी विभाग द्वारा भव्य नौरोज उत्सव का आयोजन
24 मार्च, 2025 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के फारसी विभाग ने अपने ईरानोलॉजी हॉल में पारंपरिक नौरोज उत्सव का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में ईरान और ताजिकिस्तान के दूतावासों के प्रतिनिधियों और भारत में अफगानिस्तान के विजिटिंग फैकल्टी ने भाग लिया। इस मौके पर जामिया के कुलपति प्रो. मजहर आसिफ ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति से समारोह की शोभा बढ़ाई।
कार्यक्रम की शुरुआत कुरान पाठ के साथ हुई, जिसके बाद फारसी विभाग के प्रमुख प्रो. कलीम असगर ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने नौरोज के ऐतिहासिक महत्व और इसकी सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला।
अफगानिस्तान, ईरान और ताजिकिस्तान के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने देशों में नौरोज उत्सव की परंपराओं और इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिका पर चर्चा की। भारत में ताजिक राजदूत श्री लुकमोन बोबोकालोनजादा ने नौरोज को शांति और समृद्धि का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह पर्व विभिन्न देशों और संस्कृतियों को जोड़ने का काम करता है।
ईरान के सांस्कृतिक परामर्शदाता डॉ. फरीद उद्दीन फरीद असर ने नौरोज की प्राचीनता और इसकी ऐतिहासिक जड़ों को उजागर किया। उन्होंने कहा कि यह त्योहार केवल ईरान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों और सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है।
सुफरा-ए-हफ्त सीन की भव्य प्रस्तुति
नौरोज उत्सव के मुख्य आकर्षणों में से एक था सुफरा-ए-हफ्त सीन का पारंपरिक अनुष्ठान। इसे जामिया के फारसी विभाग के पीएचडी छात्रों ने तैयार किया था। कार्यक्रम का संचालन पीएचडी स्कॉलर फातिमा सैयद मदनी ने किया, जिन्होंने हफ्त सीन की प्रत्येक वस्तु के प्रतीकात्मक अर्थ पर विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम की सफलता और भविष्य की योजनाएँ
कुलपति प्रो. मजहर आसिफ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इस आयोजन की सराहना की और कहा कि ऐसे कार्यक्रम हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने नौरोज को आत्मशुद्धि और नई शुरुआत का संदेश देने वाला पर्व बताया।
रजिस्ट्रार प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम न केवल शैक्षणिक उद्देश्यों को पूरा करते हैं, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के बीच आपसी समझ और सौहार्द बढ़ाने का भी कार्य करते हैं।
फारसी विभाग के प्रमुख प्रो. कलीम असगर ने भविष्य में भी ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया अपने समृद्ध शैक्षिक और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखते हुए आने वाले वर्षों में भी इस तरह के आयोजनों को प्राथमिकता देगा।
काबिल ए गौर
कुरान पांडुलिपि प्रदर्शनी और नौरोज उत्सव, दोनों ही कार्यक्रमों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की सांस्कृतिक विविधता और अकादमिक उत्कृष्टता को दर्शाया। ये आयोजन न केवल इस्लामी विरासत को संरक्षित करने में मददगार साबित हुए, बल्कि छात्रों और विद्वानों के लिए सीखने और समझने का एक बेहतरीन अवसर भी प्रदान किया।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की यह पहल दर्शाती है कि कैसे एक संस्थान अपनी ऐतिहासिक जड़ों को सहेजते हुए आधुनिक शिक्षा और सांस्कृतिक संवर्धन को बढ़ावा दे सकता है।