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यश चोपड़ा का प्रस्ताव ठुकराने वाले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता शहरयार: जानिए वजह

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

अभी शायर गुलजार और एक संत को ज्ञानपीठ सम्मान मिलने की चर्चा है. इस कड़ी में अखलाक मोहम्मद खान, जिन्हें शहरयार   के नाम से जाना जाता है को भी यह सम्मान मिल चुका है. 14 फरवरी 2012 को उनका अलीगढ़ में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था.

वह शुद्ध और लोकप्रिय कविता दोनों में समान रूप से माहिर थे. एक गीतकार के रूप में, उन्होंने उमराव जान के अविस्मरणीय गीतों के साथ प्रसिद्धि और धन अर्जित किया. एक शायर के रूप में, उन्होंने उर्दू भाषा के पारखियों के लिए रचनाएं की.

शहरयार का शिक्षण और लेखक एक साथ चला

उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक सम्मानित शिक्षाविद के रूप में सेवा की. उन्हें हिंदी फिल्मों में सफलता के लिए अलीगढ़ छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ी. फिल्म निर्माता अपनी कहानियों के साथ उनके पास अलीगढ़ ही आते थे.

मुशायरों में खासा नाम कमाने वाले शहरयार को 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और ’ख्वाब का दर बंद है’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

शहरयार  ने क्यों ठुकराया यश चोपड़ा का प्रस्ताव

शहरयार को अपनी शर्तों पर ही सफलता मिली. मशहूर फिल्म निर्माता यश चोपड़ा ने उन्हें फासले के बाद तीन फिल्मों का प्रस्ताव दिया था. हालाँकि, शहर्यार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. वह उपभोक्ता की मांग के अनुसार उपलब्ध रहने वाली गीतों की दुकान नहीं बनना चाहते थे. उन्होंने अपने काम के लिए आराम और एकांत को तरजीह दी, जो उन्हें अलीगढ़ में मिलता था.

अपनी कविता में, उन्होंने वंचितों के दर्द, आम आदमी की सामाजिक चिंताओं के बारे में बात करना पसंद किया. यह भावना 1978 में मुजफ्फर अली की फिल्म गमन में शामिल गजल, ’सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों है’ में सबसे उपयुक्त रूप से सामने आई.

कहते हैं, जब उर्दू शायरी उदासी, विडंबना और दुख के विषयों को अपनाती थी, तब शहरयार साहब ने आधुनिक उर्दू शायरी में आधुनिकता का एक नया अध्याय शुरू किया. अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के अलावा, उन्हें फिल्म उद्योग में गीतकार के रूप में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने ‘उमराव जान’ जैसी बॉलीवुड फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं.

आलोचकों ने शहरयार को क्यों कहा उत्साही लेखक

शहरयार का पहला काव्य संग्रह, ‘इस्म-ए-आजम’, 1965 में प्रकाशित हुआ था. आलोचकों ने उन्हें तुरंत एक उत्साही और कुशल लेखक के रूप में पहचाना, जो बड़े सामाजिक सरोकारों को शांति और विनम्रता के साथ संबोधित कर सकते थे. उन्होंने अपने कार्यों सातवें दर और नींद की कर्चियां के लिए उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकारों से राज्य साहित्य पुरस्कार भी अर्जित किया. उनकी अन्य प्रसिद्ध कृतियों में हिज्र का मौसम और ख्वाब का दर बंद है शामिल हैं. वह प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले चौथे उर्दू कवि थे.

शहरया: ए लाइफ इन पोटरी (Shahryar: A Life in Poetry)

रक्षंदा जलील ने उन पर ‘शहरया: ए लाइफ इन पोटरी’ ( Shahryar: A Life in Poetry) नाम से एक पुस्तक लिखी है जो अगस्त 2018 में प्रकाशित हुई थी. शहरयार के बारे में लेखक ने एमजान पर उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए लिखा है-
 
समकालीन भारतीय कविता की सबसे महत्वपूर्ण आवाजों में से एक, शहर्यार (1936-2012) ने 1965 में अपने पहले संग्रह इस्म-ए-आजम के प्रकाशन के बाद से ही मंत्रमुग्ध कर देने वाला जादू चलाया है. पांच दशक से अधिक के लंबे करियर में, यह दिलचस्प है कि कैसे शहर्यार हमेशा सामयिक बने रहने में सफल रहे और उनकी कविता को हमेशा समय की पुकार कहा जा सकता है.

समय के साथ लगातार प्रासंगिक बने रहने और हमेशा कहने के लिए कुछ न कुछ रखने की क्षमता उनका एक विशेष गुण है. यह पुस्तक शहर्यार की रचनाओं के विशाल संग्रह को समकालीन भारतीय लेखन की यात्रा में स्थापित करती है और न केवल आधुनिक उर्दू कविता बल्कि, अधिक महत्वपूर्ण रूप से, आधुनिक भारतीय कविता में उनके असाधारण योगदान का मूल्यांकन करती है.

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इनपुटः जिया उस् सलाम