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तालिबान की सोशल मीडिया के जरिए ‘कट्टरवादी’ की छवि तोड़ने कोशिश

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, काबुल

दुनिया का एक वर्ग हमेशा तालिबान की छवि बिगाड़ने में लगा रहता है. कभी उसे आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाला बताया जाता है, तो कभी कट्टरवादी. दुनिया का एक वर्ग ऐसा भी है जो उसे महिला अधिकारियों को समाप्त करने के रूप में पेश करता है.

तकरीबन तीन साल पहले तालिबान जब दूसरी बार अफगानिस्तान में सत्ता मंे आए तो उन्हांेने महिलाओं के काम-काज और उनकी पढ़ाई पर पाबंदी लगा दी. तब से विश्व बिरादरी उसे इस मुददे पर घेरने की कोशिश में है. यहां तक कि तालिबान सरकार को अब तक एक-दो मुल्कों को छोड़कर किसी ने मान्यता भी नहीं दी है.

ऐसे में तालिबान अपने प्रयासों और सीमित संसाधनों से न केवल अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है, बल्कि उन्हीं माध्यम से वह अपने बिगड़ी छवि सुधारने की कोशिश में है, जिसका सहारा लेकर उसे ‘बदनाम’ किया जाता रहा है.अफगानिस्तान मंे मीडिया मजबूत स्थिति मंे नहीं है. दूसरी तरफ वल्र्ड मीडिया हमेशा उसकी नकारात्मक छवि पेश करने मंे लगा रहता है. ऐसे मंे तालिबान ने बीच का रास्ता अपनाते हुए अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है.

इस समय सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेट फाॅर्म पर ऐसे अनेक वीडियो मिल जाएंगे जिसे देखकर आम लोगों की सोच तालिबान के प्रति बदल सकती है.किसी वीडियो में तालिबान के मंत्री सड़क किनारे लोगों से बतियाते मिल जाएंगे, तो किसी वीडियो में अधिकारियों को उबड़-खाबड़ रास्ते तयकर सूदूरवर्ती इलाके की स्थिति का जायजा लेते देखा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर वीडियो साझा कर तालिबान यह बताने के प्रयास में हैं कि उनके रक्षा मंत्री, आर्मी के आला अधिकारी भी आम आदमी के बेहद करीब हैं. उनके साथ उठते-बैठते हैं. रोड पर आम आदमी की तरह पैदल फिरते हैं. गरीब बच्चों के साथ खाना खाते हैं.

तालिबान सोशल मीडिया के जरिए अपनी संस्कृति को भी बढ़ावा दे रहा है. मंचों पर खास तरह की कालगी पगड़ी बांधते दिखाया जा रहा है. वह यह बताने का भी प्रयास कर रहे हैं कि आर्थिक तंगी से जूझते अफगानिस्तान के आम लोगों की तालिबानियों को न केवल चिंता है, बेहद गंभीर तरीके से इसे निपटने की कोशिश भी की जा रही है.

दो दिन पहले ही मुस्लिम नाउ डाॅट नेट ने एक रिपोर्ट के जरिए बताया था कि कैसे सीमित संसाधन में तालिबान अफगानिस्तान की अंदरूनी और बाहरी सड़कों की हालत सुधारने मंे जीतोड़ तरीके से लगे हुए हैं. वह भी अफगानी धन से, किसी बाहरी मदद के जरिया नहीं.

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