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TIME 100 प्रतिभावान शख्सियतों की लिस्ट में मोदी का नाम , भक्त क्यों नहीं मना रहे जश्न ?

अमेरिका की ‘टाइम’ मैगज़ीन के विश्व के 100 प्रतिभावान शख्सियतों की सूची में भारत से सिर्फ एक्टर आयुष्मान खुराना और संशोधित नागरिकता कानून सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में चलने वाले आंदोलन का चेहरा बन चुकी ‘दादी’ से मशहूर बिलकिस बानो का नाम नहीं है। इस लिस्ट में एक और भारतीय है-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। मगर मोदी ‘भक्त’ इस प्रयास में हैं कि उनकी यह ‘उपलब्धि’ किसी तरह देशवासियों के सामने न आने पाए।
   बुधवार से देखा जा रहा है। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से प्रकाशित ‘टाइम’ मैगज़ीन के लिस्ट में बिलकिस बानो या आयुष्मान खुराना का नाम आने पर अलग-अलग वर्गों में जश्न का माहौल। बॉलीवुड वाले खुराना को एवं सीएए आंदोलन को सपोर्ट करने वाले बिलकिस को अलग-अलग प्लेट फॉर्म से मुबारकबाद दे रहे हैं। मगर मोदी के छोटे से छोटे कारनामे को अपने प्रचार से धुंआं उठाने वाली भक्तों की ब्रिगेड बिलकुल खामोशी अख्तियार किए हुए है। इसका बड़ा कारण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में पत्रिका में जो कुछ लिखा गया है, उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि को धक्का पहुंचेगा। दूसरी तरफ सूची में बिलकिस को शामिल कर ‘टाइम’ ने सीएए-एनआरसी CAA-NRC) आंदोलन को एक तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दे दी है। इससे दिल्ली दंगे की जांच कर रही दिल्ली पुलिस पर संदेह के बादल और गहरा सकते हैं। इस समय दिल्ली पुलिस जांच में एक पक्षीय रवैया अपनाने के आरोपों से घिरी है।

इसलिए खामोश हैं मोदी भक्त

बहरहाल, अब नरेंद्र मोदी के ‘टाइम’ के 100 प्रतिभावान व्यक्तियों में शामिल होने के बावजूद उन्हें हाई लाईट नहीं करने के बारे में। मैगज़ीन में जिन शख्सियतों को शामिल किया गया है, उनके बारे में अलग-अलग लेखक-पत्रकारों द्वारा एक संक्षिप्त स्टोरी लिखी गई है। बिलकिस बानो की स्टोरी नरेंद्र मोदी की मुखर आलोचक विदेशी अखबार-मैगज़ीन में स्वतंत्र लेखन करने वाली गुजरात की राणा अयूब ने लिखी है, जबकि नरेंद्र मोदी पर टाइम के कर्ल विक ने स्टोरी किया है। विक ने अपने संक्षिप्त स्टोरी में नरेंद्र मोदी पर जबर्दस्त हमले किए हैं।
 कर्ल विक की स्टोरी का हिंदी अनुवाद कुछ यूं है-‘‘ लोकतंत्र की कुंजी, वास्तव में, स्वतंत्र चुनाव नहीं है। वह केवल इतना बताते हैं कि किसे सबसे ज्यादा वोट मिले। अधिक महत्वपूर्ण उन लोगों के अधिकार हैं जिन्होंने विजेता को वोट नहीं दिया। भारत सात दशकों से अधिक समय तक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र रहा है। 1.3 बिलियन आबादी में ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य धार्मिक संप्रदाय शामिल हैं। सभी ने भारत में पालन किया है, जो दलाई लामा (जिन्होंने अपना अधिकांश जीवन वहां शरण में बिताया है) ने इसे ‘सद्भाव और स्थिरता का उदाहरण’ कहा है। नरेंद्र मोदी ने उन सभी को संदेह में लाया है। हालाँकि भारत के लगभग सभी प्रधान मंत्री लगभग 80 प्रतिशत आबादी से आते हैं, जो कि हिंदू हैं, केवल मोदी ने शासन किया है जैसे कि कोई और मायने नहीं रखता। सर्वप्रथम सशक्तिकरण के लोकलुभावन वादे पर चुने गए, उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने न केवल अभिजात्यवाद, बल्कि बहुलवाद को भी खारिज कर दिया, विशेष रूप से भारत के मुसलमानों को लक्षित किया। महामारी को उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए ढोंग रचा गया। दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र पर गहरे बादल मंडला रहे हैं।’’
इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए पत्रिका में छपी रिपोर्ट यहां साभार दी जा रही है- The key to democracy is not, in fact, free elections. Those only tell who got the most votes. More important is the rights of those who did not vote for the winner. India has been the world’s largest democracy for more than seven decades. Its population of 1.3 billion includes Christians, Muslims, Sikhs, Buddhists, Jains and other religious sects. All have abided in India, which the Dalai Lama (who has spent most of his life in refuge there) has lauded as “an example of harmony and stability.”

Narendra Modi has brought all that into doubt. Though almost all of India’s Prime Ministers have come from the nearly 80% of the population that is Hindu, only Modi has governed as if no one else matters. First elected on a populist promise of empowerment, his Hindu-­nationalist Bharatiya Janata Party rejected not only elitism but also pluralism, specifically targeting India’s Muslims. The crucible of the pandemic became a pretense for stifling dissent. And the world’s most vibrant democracy fell deeper into shadow.

By Karl Vick 

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