UPSC Jihad कार्यक्रम के प्रसारण पर सुनवाई टली, शुक्रवार को तय होगा ‘बिंदास बोल’ का भविष्य
सुरेश चौहाणके के दिल की धड़कन 24 घंटे और बढ़ी रहेगी। उनके विवादास्पद न्यूज़ चैनल सुदर्शन टीवी पर दिखाए जाने वाले ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम का भविष्य शुक्रवार को तय होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसके ‘बिंदास बोल’ के तहत ‘यूपीएससी हिजाद’ ( UPSC Jihad ) कार्यक्रम के प्रसारण को लेकर दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई एक दिन के लिए टाल दी है। कोर्ट ने कार्यक्रम पर रोक लगाई हुई है, जिसपर गुरूवार को सुनवाई होनी थी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही है। सुदर्शन टीवी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील श्याम दिवान ने बेंच को बताया, उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर किया गया है। कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए अगस्त में याचिका दायर की गई थी, लेकिन कॉपी सितंबर में मिली। शीर्ष अदालत ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 15 सितंबर को अगले आदेश तक सुदर्शन टीवी के ‘बिंदास बोल’ पर प्रसारित किए जा रहे ‘यूपीएससी जिहाद’ कार्यक्रम की शेष कड़ी के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। फिरोज इक़बाल खान ने पीआईएल दायर कर कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक की मांग की थी। 15 सितंबर को सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ वकील अनूप जॉर्ज चौधरी याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि कार्यक्रम के नाम पर परोसी जा रही सामग्री प्रथम दृष्टया कानून का उल्लंघन है। दिल्ली उच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इसके प्रसारण पर पहले की रोक लगा चुकी है। मगर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने यह कहते हुए प्रसारण के आदेश जारी कर दिए कि बिना देखे रोक लगाना उचित नहीं। हालांकि मंत्रालय की ओर से प्रसारण से पहले कई तरह के दिशा-निर्देश जारी किए गए थे।
अधिवक्ता चौधरी ने कोर्ट को बताया कि अगर ट्रांसक्रिप्ट पढें और सुनें, तो देखेंगे कि वे कहते हैं कि मुस्लिम सिविल सर्विसेज में घुसपैठ कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुस्लिम, ओबीसी द्वारा दूसरे ओबीसी का हिस्सा खाने की बात कही गई है। अधिवक्ता ने बताया कि मुस्लिम समुदाय का मानना है कि कार्यक्रम ‘हेट स्पीच’ है। यह किसी की गरिमा एवं सम्मान को कम करता है। कार्यक्रम गरिमा को गिरा रहा है। सुदर्शन टीवी पर दिखाए जाने वाले इस विवादास्पद कार्यक्रम का भविष्य क्या हो, इसपर गुरूवार को सुनवाई के दौरान तय होना था, पर यह एक दिन के लिए टाल दी गई।
प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पहले डिजीटल पर निर्णय ले कोर्ट
उधर, केंद्र ने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि उसे मीडिया नियमन के मुद्दे पर फैसला लेने से पहले डिजिटल मीडिया के संबंध में विचार करना चाहिए, क्योंकि यह तेजी से लोगों के बीच हुंचता है। वॉट्सएप, ट्विटर तथा फेसबुक जैसी एप्लिकेशन्स के चलते किसी भी जानकारी के वायरल होने में देरी नहीं लगती। सरकार ने शीर्ष न्यायालय को बताया कि इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के लिए पर्याप्त रूपरेखा एवं न्यायिक निर्णय मौजूद हैं।
इस लिए कोर्ट कोई फैसला लेता है तो पहले डिजिटल मीडिया के संदर्भ में लिया जाना चाहिए।
सरकार ने बताया कि मुख्यधारा के मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट) में प्रकाशन, प्रसारण एक बार ही होता है, वहीं डिजिटल मीडिया की व्यापक पाठकों/दर्शकों तक पहुंच तेजी से होती है।
( न्यूज एजेंसियों के इनपुट के साथ)
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संपादक