Culture

तुर्की की व्यंग्य पत्रिका LeMan पैग़म्बर मोहम्मद और मूसा के कार्टून पर विवाद, विरोध-प्रदर्शन और गिरफ़्तारियां शुरू

वार्दा शाहिद , इस्तांबुल

तुर्की की प्रसिद्ध व्यंग्य पत्रिका LeMan एक विवादास्पद कार्टून को लेकर तीव्र आलोचना और कानूनी कार्रवाइयों के घेरे में आ गई है। कार्टून में दो पात्रों को “मोहम्मद” और “मूसा” के रूप में संबोधित करते हुए दिखाया गया है, जिससे देश भर में विरोध-प्रदर्शन भड़क उठे। इस विवाद ने तुर्की में धार्मिक भावनाओं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की सीमाओं को लेकर एक नया संवेदनशील मोर्चा खोल दिया है।


📍 क्या है पूरा मामला?

30 जून 2025 को इस्तांबुल स्थित LeMan पत्रिका के कार्यालय के बाहर सैकड़ों प्रदर्शनकारी इकट्ठा हो गए। उन्होंने पत्रिका में प्रकाशित एक कार्टून को “ईशनिंदा” और “धार्मिक मूल्यों का अपमान” बताते हुए उसके खिलाफ आवाज़ बुलंद की। प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां लहराईं, नारे लगाए और पत्रिका को बंद करने की मांग करते हुए कहा, “यह पैग़म्बरों का अपमान है, हम बर्दाश्त नहीं करेंगे!”

पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए वॉटर कैनन (जल तोप) का इस्तेमाल किया। कई प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी मामूली रूप से घायल भी हुए।


🖼️ कार्टून में क्या दिखाया गया था?

विवादित चित्र में दो पात्र एक खंडहर शहर के ऊपर हवा में तैरते दिखाए गए हैं। एक पात्र कहता है, “सलाम अलैकुम, मैं मोहम्मद हूं,” और दूसरा जवाब देता है, “वअलैकुम सलाम, मैं मूसा हूं।” कार्टून के पीछे युद्ध और बमबारी से प्रभावित एक शहर का दृश्य था, जिससे यह संकेत मिला कि पात्र युद्धग्रस्त इलाके से जुड़े हैं।

हालांकि, LeMan पत्रिका के संपादक का दावा है कि इन नामों का उपयोग “प्रतीकात्मक रूप से” किया गया और उनका उद्देश्य किसी भी पैग़म्बर का चित्रण करना नहीं था।


🔍 प्रतिक्रिया और गिरफ़्तारियां

सोशल मीडिया पर इस कार्टून की कड़ी आलोचना हुई। ट्विटर (अब X) पर “#lemandergisikapatılsın” और “#lemankapatılsın” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। दबाव बढ़ने पर इस्तांबुल के मुख्य अभियोजक ने LeMan की संपादकीय टीम के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए।

तुर्की के आंतरिक मंत्री अली यरलीकाया ने पुष्टि की कि चार लोगों को हिरासत में लिया गया है—कार्टूनिस्ट, ग्राफिक डिजाइनर, प्रधान संपादक तुंचाय अकोंगुन, और संस्थागत निदेशक। मंत्री ने खुद एक वीडियो जारी कर पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की पुष्टि की।

अभियोजन पक्ष ने एक बयान में कहा, “इन व्यक्तियों ने सार्वजनिक रूप से धार्मिक मूल्यों का अपमान किया है और उन्हें कानून के तहत सज़ा मिलनी चाहिए।”


🗣️ पत्रिका का पक्ष: गलतफहमी या जानबूझकर विवाद?

पत्रिका के प्रधान संपादक तुंचाय अकोंगुन ने AFP से फोन पर बातचीत में कहा कि यह कार्टून पैग़म्बरों को नहीं दर्शाता है। उन्होंने सफाई दी कि “मोहम्मद” नाम किसी निर्दोष आम नागरिक को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया, जो हालिया इसराइली बमबारी में मारा गया। अकोंगुन ने कहा, “दुनिया भर में 20 करोड़ से अधिक लोग मोहम्मद नाम रखते हैं। क्या हर चित्रण का यही अर्थ निकाला जाएगा?”

उन्होंने कहा कि पत्रिका ने कभी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा नहीं रखा। “यह विवाद पूरी तरह गलतफहमी पर आधारित है,” उन्होंने जोर देकर कहा।


🇹🇷 तुर्की में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक आस्थाएं

तुर्की में पहले भी ऐसे विवाद हो चुके हैं, जहां धार्मिक प्रतीकों के व्यंग्यात्मक चित्रण को लेकर कलाकारों और पत्रकारों पर कानूनी कार्रवाइयां की गई हैं। 2016 में भी LeMan पत्रिका एक अन्य विवादास्पद कवर के चलते जांच के दायरे में आई थी। तुर्की का संविधान जहां एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं के अपमान को अपराध भी मानता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला एक बार फिर तुर्की की न्यायपालिका और सरकार की विचार अभिव्यक्ति पर सहनशीलता की परीक्षा लेगा।


📢 जनता में विभाजित प्रतिक्रियाएं

जहां धार्मिक समूह पत्रिका की निंदा कर रहे हैं और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, वहीं प्रेस स्वतंत्रता से जुड़े समूह इसे कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं।

इस्तांबुल के पत्रकारों की यूनियन ने बयान में कहा, “अगर एक व्यंग्य को भी आपराधिक बनाया जाएगा, तो समाज में डर और सेंसरशिप का माहौल बन जाएगा।”


🧭 आगे क्या होगा?

इस मामले ने तुर्की में एक व्यापक बहस को जन्म दे दिया है—क्या धार्मिक भावनाओं की रक्षा के नाम पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया जाना चाहिए? अदालत में आने वाले हफ्तों में यह मामला इस सवाल का जवाब देने वाला एक नज़ीर बन सकता है।

फिलहाल, LeMan के दफ्तर को पुलिस सुरक्षा में रखा गया है, और गिरफ्तार संपादकीय टीम को कोर्ट में पेश किया जाएगा।


निष्कर्ष:
तुर्की में LeMan विवाद ने मीडिया की भूमिका, धार्मिक संवेदनशीलता और राज्य के अधिकारों के बीच एक जटिल टकराव को उजागर कर दिया है। यह प्रकरण केवल एक कार्टून तक सीमित नहीं है—यह एक ऐसे समाज की तस्वीर है जो आधुनिकता और परंपरा, अभिव्यक्ति और आस्था के बीच संतुलन खोजने की जद्दोजहद में है।