मध्य पूर्व की हिंसक खबरों से Gen Z की मानसिक सेहत पर खतरा! UNICEF रिपोर्ट में खुलासा
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दुबई / शेरूक ज़कारिया
UNICEF के नेतृत्व में हुई एक नई स्टडी में चेतावनी दी गई है कि लगातार मिल रही वैश्विक खबरों की बाढ़ ने जनरेशन Z (Gen Z) को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह युवा वर्ग न केवल चिंता और मानसिक दबाव से जूझ रहा है, बल्कि उनका आत्मविश्वास और सामाजिक जुड़ाव भी कमजोर पड़ता जा रहा है।
Gen Z — यानी 1990 के आख़िर से लेकर 2010 के दशक की शुरुआत में जन्मे युवा — आज की दुनिया में सबसे ज़्यादा समाचार सामग्री खपत करने वाला वर्ग बन गया है। UNICEF के ग्लोबल कोएलिशन फॉर यूथ मेंटल हेल्थ द्वारा कराए गए एक सर्वे में दुनिया भर के 14 से 25 वर्ष की उम्र के 5,600 से अधिक युवाओं को शामिल किया गया। परिणाम चिंताजनक हैं: 60% युवाओं ने स्वीकार किया कि वे खबरों की बाढ़ से अभिभूत और तनावग्रस्त महसूस करते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर बढ़ता दबाव
UNICEF की मेंटल हेल्थ प्रमुख डॉ. ज़ैनब हिजाज़ी ने कहा कि आज के युवाओं पर जलवायु संकट, युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक अनिश्चितता जैसे मिलेजुले संकट गहराई से असर डाल रहे हैं। ये तनाव अब केवल समाचार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि युवाओं के शरीर, मन और भविष्य की आशा तक पहुंच चुके हैं।
हिजाज़ी के मुताबिक, इज़रायल-गाज़ा युद्ध जैसे टकराव, विशेषकर 2023 के बाद से, मध्य पूर्व की हिंसक खबरों ने युवा मन पर गहरा असर डाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि Gen Z भले ही खुद को दुनिया से जुड़ा हुआ महसूस करता हो, लेकिन लगभग 67% युवा वैश्विक घटनाओं की खबरें देखकर परेशान हो जाते हैं, जो उनके देश या समुदाय की खबरों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

सोशल मीडिया: सूचनाओं का झरना या मानसिक बोझ?
यूएई की मनोवैज्ञानिक डॉ. शायमा अल-फरदान कहती हैं कि लगातार खबरें पढ़ना और सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते रहना युवाओं को असल सामाजिक जुड़ाव से दूर कर रहा है। इससे उनकी भावनाएं नकारात्मक दिशा में जाती हैं और मानसिक विकास प्रभावित होता है।
एक शोध प्लेटफॉर्म “Attest” के अनुसार, 43% Gen Z युवा सोशल मीडिया से रोजाना समाचार लेते हैं, जिनमें TikTok सबसे आगे है। हालांकि यह जागरूकता बढ़ाता है, लेकिन भ्रामक या अधूरी जानकारी का जोखिम भी बढ़ जाता है।
डॉ. अल-फरदान के अनुसार, युवाओं के मस्तिष्क का निर्णय-निर्माण हिस्सा अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ होता, इसलिए उन्हें आलोचनात्मक दृष्टिकोण की शिक्षा देना जरूरी है। लगातार स्क्रॉलिंग से मस्तिष्क में नकारात्मक सोच के पैटर्न बन सकते हैं, जो डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और सामाजिक अलगाव जैसे गंभीर मानसिक विकारों में बदल सकते हैं।

सुर्खियों में छिपा अधूरा सच
अमेरिकन यूनिवर्सिटी इन यूएई की मीडिया विशेषज्ञ एलिज़ाबेथ मातर के अनुसार, सोशल मीडिया पर खबरों के टुकड़ों को देखकर युवा गहराई से समझ नहीं बना पाते। वह कहती हैं, “हेडलाइंस और फोटो के साथ आने वाली खबरें पूरा संदर्भ नहीं देतीं, जिससे समझने की क्षमता घट जाती है।”
उनका मानना है कि ‘जानकारी की बाढ़’ ने लोगों को भ्रम और अनिश्चितता में डाल दिया है, खासकर जब खबरें सिटिजन जर्नलिज़्म जैसे अनौपचारिक स्रोतों से आती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य: अब केंद्र में लाना होगा
रिपोर्ट में पाया गया कि 40% युवा मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करने में झिझक महसूस करते हैं और केवल आधे ही जानते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर कहाँ मदद ली जा सकती है।
अल-फरदान कहती हैं कि किफायती और संस्कृतिक रूप से उपयुक्त थेरेपिस्ट की कमी, साथ ही मानसिक चिकित्सा के बारे में जानकारी की कमी, समस्या को और गंभीर बना रही है।
समाधान क्या है?
- शिक्षा और मीडिया साक्षरता
- सोशल मीडिया का सीमित उपयोग
- सकारात्मक आदतें बनाना
- सरकार, स्कूल, और निजी क्षेत्र का सहयोग
UNICEF की डॉ. हिजाज़ी कहती हैं, “हमें केवल तथ्यों को नहीं, बल्कि भावनाओं को भी सुनना होगा, तभी हम सच्चे समाधान तैयार कर सकेंगे जो सहानुभूति पर आधारित हों और मानव कल्याण को केंद्र में रखें।”
Stigma prevents young people from discussing their mental health openly, but it doesn’t have to. Breaking the stigma starts with your words. Join us and @EU_Health this Mental Health Awareness Month to put wellbeing first. #LetsTalk pic.twitter.com/cktIKFkdHH
— UNICEF Europe C.Asia (@UNICEF_ECA) May 25, 2025
निष्कर्ष:
Gen Z की मानसिक सेहत अब केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय है। अगर खबरों की खपत को समझदारी से नियंत्रित न किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह युवाओं की सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक वृद्धि के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।