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क्या AIMIM को महागठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए? बिहार में सेक्युलर वोटों के बिखराव पर फिर गरमाई बहस

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही एक बार फिर यह सवाल केंद्र में आ गया है—क्या असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को राजद-कांग्रेस-लेफ्ट महागठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि सेक्युलर वोटों का बिखराव रोका जा सके? यह बहस इसलिए अहम हो गई है क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की कई सीटों पर सेक्युलर वोट काटे, जिससे परोक्ष रूप से एनडीए को फायदा हुआ और नीतीश कुमार की अगुवाई में भाजपा गठबंधन सत्ता में लौट आया।

अब जबकि AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई है, बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।

AIMIM को क्यों कहा जाता है ‘बीजेपी की बी टीम’?

ओवैसी की पार्टी पर अक्सर आरोप लगता है कि वह चुनावी मैदान में उतरकर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है, जिससे बीजेपी को लाभ होता है। ओवैसी की आक्रामक बयानबाजी, खासकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे मुद्दों पर, कट्टर समर्थकों को भले लुभाए, लेकिन सेक्युलर तबका इससे असहज नजर आता है।

वक्फ एक्ट के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शुरू किए गए आंदोलन में ओवैसी ने शुरुआत में तो समर्थन जताया, लेकिन बाद में खामोश हो गए। हाल ही में पटना में आयोजित गांधी मैदान के विशाल सम्मेलन में भी ओवैसी गैरहाज़िर रहे, जबकि उस मंच से राजद, कांग्रेस समेत कई सेक्युलर दलों ने केंद्र सरकार को घेरा।

राजद ने AIMIM को गठबंधन में शामिल करने से किया इनकार

AIMIM के प्रस्ताव के बावजूद RJD ने फिलहाल ओवैसी को गठबंधन में लेने से इनकार कर दिया है। राजद के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा,

“ओवैसी का आधार हैदराबाद में है। कभी-कभी चुनाव न लड़ना भी बड़ा सहयोग होता है। अगर वे सच में बीजेपी को हराना चाहते हैं, तो बिहार का चुनाव न लड़ें।”

यह बयान आते ही ओवैसी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मनोज झा को ‘मुस्लिम विरोधी’ करार देना शुरू कर दिया, लेकिन जानकार मानते हैं कि संसद और सड़क दोनों जगहों पर मुस्लिम मुद्दों पर सबसे मुखर आवाज मनोज झा ही रहे हैं।

तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर मांगी जनता की राय

तेजस्वी यादव ने जनता से सीधे सवाल पूछते हुए कहा—

“क्या AIMIM को महागठबंधन में शामिल किया जाना चाहिए? वोटों के बिखराव को रोकना क्या बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की कुंजी नहीं है?”

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव के समय कुछ वर्ग जानबूझकर ओवैसी या अन्य ‘कट्टर विकल्पों’ को आगे करके महागठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाते हैं।

क्या AIMIM को जगह देकर महागठबंधन को होगा फायदा?

यह बहस अब दो धाराओं में बंट गई है:

  • एक पक्ष मानता है कि AIMIM को साथ लेने से सीमांचल में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण महागठबंधन के पक्ष में होगा।
  • दूसरा पक्ष चेतावनी देता है कि ओवैसी के जुड़ने से हिंदू वोटों में प्रतिक्रिया स्वरूप ध्रुवीकरण हो सकता है, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा।

AIMIM की उपेक्षा या रणनीतिक दूरी?

सोमवार को जब पटना में महागठबंधन की घोषणा पत्र समिति की बैठक हुई, AIMIM को आमंत्रित नहीं किया गया। इससे AIMIM खेमे में नाराज़गी बढ़ी। अख्तरुल इमान ने इस उपेक्षा को लेकर भी सवाल उठाए हैं।

वेणुगोपाल का हमला—”सरकार वोटर दमन की विशेषज्ञ”

इधर, कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा:

“यह सरकार लोगों को तकलीफ देने में माहिर है। SIR (Special Identification of Residents) जैसी योजनाएं लाखों मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित करने की कुत्सित कोशिश हैं। यह हास्यास्पद कवायद तत्काल बंद होनी चाहिए।”


निष्कर्ष:

बिहार चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, यह साफ होता जा रहा है कि सिर्फ बीजेपी विरोध नहीं, बल्कि वोटों का समन्वय और रणनीतिक एकता ही सत्ता परिवर्तन की कुंजी बनेगा। ऐसे में ओवैसी को साथ लेना लाभकारी होगा या नुकसानदेह, यह फैसला आंकड़ों से ज़्यादा समझ और समावेशी राजनीति के तराजू पर तौलना होगा।

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